जनतंत्र के मायने जनता उप्पर राज करई नोहय
का- कहिबे

हर बछर जइसे इहू बछर गनतंत्र दिवस आ गे। हमन ल खुसी हावय के हमर गनतंत्र 71 बछर के होगे। याने के बुढ़वा होगे। काबर अतेक उमर के मनखेमन ल सियान माने जाथे। करमचारीमन ल घलो बुढ़वा मान के रिटायर कर देथें। ये अउ बात हे के हमर नेतामन कभु रिटायर नइ होवंय। बुढ़वा म वोकरमन के पूछ-परख अउ बड़ जथे। जतके जादा उमर, वोतके बडक़ा पदवी घलो मिल जथे!
वइसे हमर गनतंत्र म सबले जादा बेकदरी ‘गन’ के होवय हे। गन माने आम मनखे। आम मनखे ह ‘ढोलक’ होगे हे। नेतामन तो आम मनखेमन के अड़बड़ बाजा बजाथें। ऐकर कारन घलो हे। जउन नेता अउ वोकर पारटी वालेमन आम मनखे के जतके हित के गोहार पारथें, वोकरमन के वोतके फाइदा होथे। आम मनखेमन गरीब ले अउ गरीब होत जाथे। फेर, नेतामन के धन-दउलत ह मड़माड़े बाढ़त जाथे। वोकर सेती जउन पारटी ह सत्ता पा लिस, कोनो नेता लकुरसी मिल गिस तहां ले झन पूछव। कुरसी ले उतरे के नामेच नइ लंय।
फेर, ये देस म नेतामन ले कोनो पूछइया नइये के तुंहर तीर अतेक संपत्ति कहां ले आइस? कइसे आइस? कोन दिस? काबर दिस? बदला म का देव? कइसे देव? काकर अहित करके देव? जनता के हक मारेव, के देस ल बेच के देव? आपमन देस अउ जनता के दुरदसा ल देखव। गरीबी, महंगई, असिक्छा, बेरोजगारी, भरस्टाचार, मिलावट, अपराध, आतंकवाद, माओवाद बाढ़त जावत हे। चरित, नैतिकता, ईमानदारी, सुभिमान, अच्छाई, भाईचारा, सद्भावना, इंसानियत, देसपरेम, मानवता कमतियात जावत हे। पानी, बिजली, सडक़, सिक्छा, सुवास्थ, सफाई, रोटी-कपड़ा-मकान अउ नियाव बर आम मनखे आजो तरसत हें। कानून ल अपन खिंसा म लेके चलइया मनखे के घलो कमी नइयेे। इहां पइसा म ईमान-धरम, कानून- नियाव सबो जिनिस बेचावत हे। अपन सुवारथ बर देस अउ समाज के आन-बान-सान ल बेचइया देस के दुस्मन बाढ़त जावत हें। देवतामन के भुइंया म माइलोगिनमन के इज्जत रोज्जेच लुटावत हे। संविधान बनइयामन के मंसा पूरा नइ होवत हे। जनता के भलई ल ताक म रखके नेता, मंतरी, साहब, बेपारी, उद्योगपति, पूंजीपतिमन मजा उड़ावत हें। राजा-महराजा अउ अंगरेजमन के राज चलदिस, फेर वोकरेमन कस राज आजो चलत हे तइसे दिखई देथे।
जब ‘जनता बर, जनता के दुआरा, जनता के राज म’, जनता ह ‘परजा’ अउ सरकार चलइयामन ‘राजा’ आजो बने हें। कानून के रखवारमन कानून तोड़त हें। नियाव मिले म गरीब अउ अमीर म भेदभाव होवत हे। जादाझन मनखेमन गनतंत्र दिवस ल छुट्टी मनाय, के दिन समझथें, त अउ का-कहिबे।
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