भाईचारा, समानता अउ दान के महिमा
लोक परब छेरछेरा

पुस सुक्ल पक्छ के पूरनिमा के दिन छत्तीसगढ़ म परंपरागत रूप ले छेरछेरा परब मनाय जाथे। इहां के सामाजिक परिवेस म, खासकर ग्राम्य जीवन म छेरछेरा के अहम जगा हे। नवा फसल आय के खुसी म ये परब मनाय जाथे। ये कहना गलत नइ होय के ऐकर से समाज म भाईचारे बाढ़थे।
लोक परब छेरछेरा ल पराचीन समे के राज्योत्सव कहि सकथन। कलचुरी राजा मन के समे रतनपुर राजधानी रिहिस। सबे गांव के बेवस्था सामाजिक मुखिया मन के हाथ म रिहिस। ये मुखिया मन नियाव घलो करंय। हर गांव म राजा के एकझन परतिनिधि राहय। गांव म राजा के दखल राहय। राजा के सम्मान अउ दबदबा रिहिस। पुस पूरनिमा म राजा ह सलाना लगान वसूलेय। राजा के परतिनिधि भूमिपति अउ विसयपति के दायित्व रहिसि के वो दिन अनाज के रूप मं राजा के लगान वसूलके राजधानी तक पहुंचाना। ये दिन लोक वाद्य बाजवत लगान वसूली करे जाए। मराठा सासनकाल म लगान वसूली के परथा ह बंद होगिस। फेर छेरछेरा ह उत्सव बनके रहि गे। लगान वसूली ल जमीदार मन ल सौंप दे गीस। अंगरेज मन के सासनकाल म जोरसोर से मनाय जावइया लोक परब बनगे। ये दिन बिहनिया उठके ले लोगमन घर-कोठा के साफ-सफाई करथें। नहा के गोपूजन अउ हूम-धूप करथें। फेर किसन टोकरी लेके अन्न दान ले बर निकलथे।
छेरछेरा सब्द के उत्पत्ति
छेरछेरा सब्द के उत्तपत्ति
कहथें के एक बार भयंकर अकाल परिस। जीव-जंतु मन मरे ले धरसील। मनखे मन दाना-दाना पर तरसे ले धरनीस। तक एकझन महात्मा ह कहिस के सौं आंखी वाली देवी के पूजा करे से अकाल टल जही। तहां ले गांव-गांव म देवी पूजा होय बर धरलीस। राजा ह खजाना खोल के पूजा कराइस। देवी के आंखी ले अतका आंसू निकलीस के धरती के पियास बुझा गे। खेती-बाड़ी होय बर धरलीस। तब देवी के आसीरवचन देवत कहिस- श्रेय:, श्रेय:। माने सबके भला होवय। आगू चलके श्रेय:, श्रेय: सब्द ह छेरछेरा मं बदल गे।
१९वीं सदी तक छेरछेरा के उछाह गांव-गांव मं दिखय। 21वीं सदी के भागदउड़ म अब परब ह नदावत हे।
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