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छेरछेरा म डंडा नाच

locationरायपुरPublished: Jan 25, 2021 05:15:21 pm

Submitted by:

Gulal Verma

परब बिसेस

छेरछेरा म डंडा नाच

छेरछेरा म डंडा नाच

छत्तीसगढ़ के बडक़ा भुइयां के संस्करीति ह घलो बहुचे बडक़ा हे। इहां के रहवइया मनखे मन खेती-किसानी जादा करथें अउ खेती ह उंकर जिनगी के अंग बन गे हे। जेन ह उंकर तीज-तिहार म दिखथे। छत्तीसगढ़ के भुइयां के बेटा मन सालभर के मिहनत के फल धान के फसल ल काटथें अउ मीस-कुट के अपन कोठी म भर लेथें। इंद्र भगवान के किरपा ले बने पानी गिरे अउ बने धान होय ले उंकर करेज्जा ह सुख म भर जथे। तब उंकर सुख ह दिखथे छेरछेरा परब म।
डंडा नाच : छेरछेरा परब पूस पुन्नी के दिन मनाय जाथे। जम्मे मनखे मन धान के दान देथें अउ लेथें। ये परब के परमुख आकरसन डंडा नाच ह आय। जेला छत्तीसगढ़ के भुइयां के बेटा मन अति आनंद अउ उछाह से नाचथे। छत्तीसगढ़ के जम्मो गली-खोर, अंगना म ***** के थाप अउ डंडा टकराये के मीठ अवाज गुंजत रइथे। चारों मुड़ा सुख अउ आनंद के नदिया बोहात रइथे। डंडा नाच के बारे म लोक कथा हे।
डंडा नाच के नांव : फूलगथनी- ऐमा सब्बे नचइया मन बाजा बजइया के चारों मुड़ा फूल के माला असन गोल घेरा बनाके नाचथें अउ गाथें। ‘बर तरी आये बरतिया, मोर भउजी बर तरी आये बरतिया, मोर मुड़ कोरी गाथे देवे, मोर भउजी बेनी गथा देबे जस फूल के हो।’
तिनडंडियां- ये नाच म नचकहार मन तीन बर डंडा ल टकरा के नाचथें। ऐकर गीद हे- ‘राम के रमइया ल कइदे चारों भइया ल, रथ के हकइया ल सुरति लगे।’
रेखी- रेखी नाच म दू डंडा मुंड के उप्पर अउ दू डंडा तरी म मारके नाचथें अउ गाथें- ‘अंगना लिपे चौक चंदन बड़े मालिन हो, सुखाये हे सफरी धान हो ये, धान ल फोली-फोली खाये हो, न बरजउ-बरजउ नंदन अपन गुड़ेरिया हो।’
पीठ जोरी- जम्मे नचकदार मन अपन पीठ ल जोर के नाचथें अउ गाथें- ‘डंडा हो डंडा खैर के डंडा, बइला म लादे जाथे जो बइला, मंगाये गढ़ नरवर ले।’
गुनढऱकी- येला बइठ के नाचथें अउ गाथें- ‘दिन दसहरा बाबू रे, ढोल बजाय रे ढोल, रंग डारे पलंग ल ना।’
मांढऩ- येमा सबझन गोल बनाके नाचथे अउ गाथें- ‘पुन्नी के चंदा बिलम के आये रे, बहुली रखे छुपाय कतका बेर, तोर जनम इरसिंग-बिरसिंग जनमय घोड़ा करिया रे।’
ये तरह छेरछेरा के दिन जम्मो छत्तीसगढ़ म गीद-संगीद अउ नाच के गंगा बहिथे। येहा छत्तीसगढिय़ा मन के बड़ा छाती अउ गीद-संगीद के परेम ल बताथे। येहा हमर अंजोर परंपरा म अगुवा हे।
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