छत्तीसगढ़ी के बढ़ोतरी कइसे होगी?
मानक बिन मान नइ! छत्तीसगढ़ी म हो पढ़ई

छ त्तीसगढ़ी अपन साख खातिर जूझत हे। जउन सपना ल संजो के इहां के मनखेमन ह उदिम करके छत्तीसगढ़ी ल राजभासा के मान देवाय रहिन आज ये भासा ह अपन अस्तित्व बर जूझत हे। आखिर छत्तीसगढ़ी के दयनीय होय के का कारन हे? आखिर हर परदेस के जइसन ऐला पूरा भासाई आधार काबर नइ मिल पात हे? सरकारी दफ्तर, इस्कूल, कालेजमन म काबर उछाह से राजभासा अउ महतारीभासा दिवस नइ मनाय जाय? अतेक बछर राजभासा बने होगे, फेर ऐकर मानकीकरन काबर नइ हो पात हे? काबर ऐला इस्कूल सिक्छा म लागू नइ करे जात हे? काबर सरकारी दफ्तरमन म छत्तीसगढ़ी म काम-बूता नइ करे जावत हे? कभु-कभु तो छत्तीसगढ़ी के लिपि अउ बियाकरन नइये कहिके बरगलाय के काम घलो करे जाथे।
ये सबके पाछू कारन का हे अउ निदान का हे ऐकर संसो करे के बुता राजभासा आयोग ल करे बर चाही। सरकार ह येआयोग के इस्थापना इही भासा बर करेहे, त ऐकर बढ़ती काबर नइ होवय हे? आयोग ल अब अपन भूमिका अदा करे ल परही।
राजभासा आयोग ह धियान दय
छ त्तीसगढ़ी ह राजभासा बन गे हे त वोला अब इस्कूलमन म पढ़ाय बर चाही। पहली छत्तीसगढ़ी ह सिरिफ बोलचाल के माध्यम रहिस। फेर अब वोमा एमएम के पढ़ई घलो होवत हे। जउन ह छत्तीसगढ़ी के बढ़ोतरी खातिर एक बढिय़ा परयास आय। अब ऐकर बिस्तार करके परथमिक सिक्छा म तुरते सुरू करे बर चाही। ऐकर से छत्तीसगढ़ी ल मान- सम्मान मिलही। लइकामन छत्तीसगढ़ी संस्करीति अउ साहित्य ल पढ़ पाहीं, जान पाहीं।
कोनो भासा ल मेटाय ले वोला बोलइया मनखे अउ समाज घलो ह मेटा जथे। इही छत्तीसगढ़ म चलत हे, तभे इहां के भासा ल वो जगा नइ देवत हें। जब छत्तीसगढ़ी म एमए हो सकत हे त सुरवाती सिक्छा ह काबर नइ हो सकत हे? ऐमा सरकार के मंसा म कमी हे। तभे छत्तीसगढ़ी ह पनप नइ सकत हे। संगे-संग छत्तीसगढियामन घलो अपना भासा ल लेके जागत नइये। तेकर सेती छत्तीसगढ़ी भासा ल सही मान-सम्मान नइ मिल पावत हे। छत्तीसगढ़ी के बढोतरी खातिर नेता, अभिनेता, करमचारी-अधिकारी, साहित्यकार, पत्रकार, मास्टर, बुद्धिजीवी, आम जनता सबो ल मिलजुर के कदम बढ़ाय बर चाही।
छत्तीसगढ़ी म हो पढ़ई
छ त्तीसगढ़ी बोली अब राजभसाा बन गे हे। अब तो छत्तीसगढ़ी के मान-सम्मान आगास म पहुंच जाय बर चाही। फेर, अइसन का होवत हे? कोनो राज, संस्करीति, परंपरा, भासा अउ गियान-बिग्यान ल साहित्य ह सहेज के रखथे। भासा अउ साहित्य के बिकास बर मानक सब्द घलो होय बर चाही। छत्तीसगढ़ी म मानक सब्द नइ होय ले साहित्याकरमन दुविधा म हें, वोमन जादा आगू नइ बढ़ पावत हें। राजभासा आयोग के गठन होय ले साहित्यकारमन के इही पीरा ह थोकन कमतियाय हे, फेर पूरा कटे नइये। सबले पहिली तो जम्मो कलमकारमन मानक सब्द के अगोरा करत हें। मानक सब्द लाने के बूता आयोग ल करे बर चाही।
मानक सबद के अभाव म कोनो काहीं रचना करे, सबला मानेच ल परथे। ऐमा जम्मों के नकसान हे। नवा लिखइयामन ल कोनो टोक नइ सकय। टोके या सुधारे बर कोनो आधार तो होय बर चाही। एक घंव नवा कलमकार के अधकचरा रचना आघू बढग़े ताहन वोला सुधार नइ सकस। ये भोरहा म कतको कलमकार अब छत्तीसगढ़ी के मूल सबद ल घलो भुलावत हें। जइसे बउरना, बेरा, पहुना, कपाट, दुवार अउ कतकोन।
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