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समाज के दाड़

locationरायपुरPublished: May 10, 2021 04:48:52 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कहिनी

समाज के दाड़

समाज के दाड़

आज पहटी-पहट म सावितरी के परान-पखेरू उडिय़ागे। तीन महीना ले बीमारी धरे, खटिया म सुते, सावितरी के गोड़-हाथ थिरागे। वोकर मरे के बेर वोकर बेटी सोनबती अउ दमांद ह रिहिस। परोसिनमन जम्मो जुरियागे। फेर वोकर लरा-जरा, सगा-संबंधीमन वोकर मुंहाटी म झांके ल नइ आइन। मरनी के किरियाकरम बर उंकर समाज के मनखेमन नइ पहुंचिन। बिहनिया ले मंझनिया होय लगिस। सावितरी के कोनो सगा-संबंधी नइ आइन। वोकर बेटी-दमांद दूनोंझन लास ल पोटारे रोवत रिहिन। परोसिन रीता ले देखे नइ गिस इही दुख ह। वोहा सावितरी के भउजी घर गिस, जेन ह रावनभांठा म रहाय। रीता ह सावितरी के भउजी ले कहिस- पहट ले सावितरी के परान-पखेरू उडिय़ागे। वोकर किरियाकरम बर काबर नइ जावत हव। अभे बिहनिया ले मंझनिया अउ संझा होवत हवय। चार मनखे त चाही कांधा देबर। अपन गोत-गोतियार के त परिवार म महतम हवय।
वोकर गोठ ल सुन के रोवत वोकर भउजी ह किहिस- तंय नइ जानस दीदी। इही सावितरी दीदी ह हमर समाज ले बाहिर समाज के नेम ल टोर के आन जात के मनखे ले बिहाव करे रिहिस, त वोला समाज के मनखेमन जात ले बाहिर कर दे हवय। ऐकरे सेती वोकर मरनी म कोनो नइ जावत हें। महुुं वोकर मरनी म जाहूं त मोला घलो समाज के दाड़ ल भोगे बर परही। मेहा का, जेन ह वोकर मरनी म जाही तेन ल समाज के दाड़ ल भोगे ल परही। अपन जीते जी सावितरी ह समाज म मिल जतिस त आज ये दिन देखे ल नइ परतिस।
रीता कहिस- फेर, अभीकुन कछु नइ हो सकय का? चार मनखे गोतियार के, समाज के मन वोकर कांधा दे बर नइ आ सकंय। वोकर बात ल सुन के सावितरी के भउजी ह किहिस- का करबोन दीदी अभुकुन त कछु नइ हो सकय। मेहा वोकर सगे भउजी होके तको वोकर माटी म नइ जा सकंव। मेहा जाहूं त मोला घलो समाज के दाड़ ल दे ल परही। फेर महुं त गरीबीन अंव। मोरो त चारझिन नोनी हवय। वोकर बर-बिहाव म कोनो रुकावट झन आ जाय, इही पाय के महुं अपन छाती म पथना राख के घरे म रोवत हंव। वोकर भउजी के गोठ ल सुन के रीता ह उलटा पांव लहुंटगे।
सावितरी के लास ह घर दुवारी म माढ़े बिहनिया ले संझा होय लगिस। सावितरी के नोनी अउ दमांद रोवत रिहिस। उही बेरा लोहा बाड़ा दुकान के मालिक जगदीस ह सावितरी के मरे के गोठ अउ वोकर समाज के गोठ ल सुन के दउंड़त आइस अउ वोकर नोनी ले किहिस -नोनी तेहा कोनो फिकर संसोझन कर, मेहा मरनी के किरियाकरम अउ खरचा ल देहूं। काबर तोर दाई ह अतका दिन मोर घर संझा- बिहनिया काम-बूता म आवत रिहिस। वोकर गुन ल मंय नइ भुला सकंव। अइसना कहिके जगदीस ह काठी बनाय बर लकड़ी बर पइसा दिस। लकड़ी आगे अउ काठी तियार होगे। काठी बर चार बाबू मनखे चाही। एक अंग कोती जगदीस ह काठी ल धरिस अउ दूसर अंग दूझन परोसीमन धरिन अउ चउथा अंग सावितरी के दमांद ह काठी ल धरिस। राम नाव सत हे… राम नांव सत हे… कहत सावितरी के काठी ल धरे सब्बो झिन समसान कोती रेंगदिन।
समसान म सावितरी के दमांद ह मरनी के जम्मो नेग ल करिस। आज सावितरी हर इही दू बोलिया संसार ले बिदा होगिस। जात-पात के मनखे ले बिदा होगिस। मनखे ले बडक़ा समाज के दाड़ ले उबरगे, चारों मुड़ा आगी म तोपाय धू..धू.. करके बरत सावितरी अपन जिनगी के सत ल पागे। तीज नहावन अउ दसगात बर समाज-गोतियार के मनखेमन ह सोनबती ले कहिन- नोनी तेहा अपन दाई के दाड़ ल दे- दे त इही मरनी के जम्मो नेग म हमर गोतियार अउ गोतियारीमन जुरिया सकत हवन। रोवत सोनबती ह किहिस- बबा मोर दाई ह मोला पाले-पोसे के अब्बड़ उदिम ल करे हवय। अपन सफ्फा जिनगी मजूरी, घर बूता कर के मोला अतका बड़े करिस अउ मोर बिहाव तको करिस। फेर, बर-बिहाव के बेर त कोनो समाज, गोत-गोतियार म दाड़ के गोठ ल नइ गोठियाइन। ओ बेरा त जम्मो समाज, गोत-गोतियार के मनखेमन आय रिहिन हवय। फेर, मोर दाई के मरनी म इही दाड़ के गोठ अउ वोकर काठी म चार मनखे नइ जुरिया सकिस। इही गोठ ह मोला अब्बड़ पीरा देवत हवय। समाज के दाड़ ल मेहा देय बर तियार हंव, फेर मनखे ले जियादा समाज के दाड़ ह होगे। आज समाज के मनखेमन म सगा-सहोदर म थोरकुर पीरा, दुख, सद्भावना नइये तइसने लागथे।
सोनबती कहिस- मोला अइसे लागथे के समाज के मनखेमन के छाती ह पथना होगे हवय। मेहा आपमन ल पूछत हंव के, इही समाज ह मनखे ले मिलके बनथे अउ समाज म मनखे नइ रइही त समाज कइसे बनही? समाज ले बढ़ के मनखे हवय, के मनखे ले बढ़ के समाज? इही गोठ ल बिचार करे ल परही।
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