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वाह! पौधा लगाय के बाद सुध नइ लेय के ‘नवा फैसन’

locationरायपुरPublished: Jun 14, 2021 03:01:50 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का- कहिबे

वाह! पौधा लगाय के बाद सुध नइ लेय के ‘नवा फैसन’

वाह! पौधा लगाय के बाद सुध नइ लेय के ‘नवा फैसन’

मितान! आज मनखे अतेक ललचाहा अउ सुवारथी होगे हे के अपन मतलब बर, अपन तिजोरी भरे बर दुनिया ल बेच सकत हें। ये दुनिया के सबो चीज ल अपन ददा के जागीर समझथें। जइसे वोकर ददा ह दुनिया ल बिसा ले हे। अइसे लागथे के आज जेकर हाथ म पइसा हे, सत्ता के पावर हे, कुरसी के गरमी हे, तेमन ल कुछु भी जिनिस बिगाड़े के जइसे लाइसेंस मिल गे हे। ऐमन जंगल उजार के फेक्टरी लगा सकथें, कालोनी-सहर बसा सकथेें, रूख-राई ल काट के सडक़ बना सकथें।
सिरतोन! रूख-राई, जंगल होथे त वोकर देखरेख-सुरक्छा बर एक ‘बिभाग’ घलो होथे। चौमासा म ‘बन बिभाग’ आगू आथे अउ कहिथे के ये बछर अतका करोड़ पौधा लगाबोन। जनता जानथे के ‘हाथी के दांत देखाय के दूसर, अउ खाय के दूसर होथे।’ कतकोन बछर ले पौधारोपन के अभियान चलत हे। हर बछर करोड़ों पौधा लगावत हें। त फेर अउ पौधा लगाय बर जगा कहां ले पा जथें!
मितान! हमर देस म भरस्टाचार, बेईमानी, हेराफेरी, गड़बड़झाला के कतकोन किस्सा हें। वोमा पौधरोपन अभियान म घलो लाखों रुपिया के गोलमाल कर देथें अउ फेर कहि देथें के ‘पौधा तो लगाय रहेन, फेर वोला छेरी अउ गाय-गरवामन चर दिस।’ बन बिभाग के साहेबमन बडक़ा जादूगर होथेेंं। वोमन हर बछर लाखों पौधा ल गायब कर देथें। तहां उही जगा म नेतामन फेर पौधा रोपे के ‘रस्म’ निभाथें, फोटो खिंचवाथें अउ चलते बनथें हाथ हलावत।
सिरतोन! सबले जादा दुख तब लागथे जब कोनो हरियर पौधा ल मुरझावत, उखड़त, मरत देखथन। रूख-राई कमतियाय के नुकसान तो आपमन जानतेच हव- बाढ़त परदूसन, बदलत मउसम, अब्बड़ गरमी, कहुं अकाल, कहुं बाढ़। ये पइत तो कोरोना महामारी म ऑक्सीजन के कमी के सेती कतकोन मनखे के परान चलदिस। अरे मुरख मनखे हो! जेन डारा म बइठे हव, उही ल काटहू, त गिरे ले कोन बचाही। रूख-राई ऑक्सीजन देथे। जेकर से मनखे के सांस चलथे। सांस चलथे त जिनगी रहिथे।
मितान! रूख-राई ल कटइयामन ल जेल म डारे बर चाही। लगाय पौधा के सुरक्छा नइ करइयामन के संगे-संग पौधा लगाय के बाद वोकर सुध नइ लेवइया नेतामन ल घलो नइ छोड़े बर चाही। पौधारोपन अभियान म लगाय पउौधामन के बरबादी बर बिभाग के अधिकारी-करमचारीमन ल कसूरवार माने बर चाही। जब रखवारमन खुदे रूख-राई के बिनास करत हें, जंगल के जंगल उजारत हें। जब पौधारोपन अभियान के बारा बजइयामन के कुछु नइ बिगड़त हे, त अउ का-कहिबे।
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