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लोक जीवन म अभार के भाव हरेली

locationरायपुरPublished: Aug 02, 2021 03:09:13 pm

Submitted by:

Gulal Verma

परब बिसेस

लोक जीवन म अभार के भाव हरेली

लोक जीवन म अभार के भाव हरेली

‘हरेली’ के तिहार ह हमर खेती-किसानी के परंपरा से सरोखा राखथे। हरेली ह काबर छत्तीसगढ़ के जम्मो परंपरा ह कानो न कोनो रूप म खेती के परंपरा ले जुड़े हावय। जब कोनो तिहार ल हम मनाथन तब वोकर परंपरा के संग एकसार हो जाथन। हरेली ह सिरिफ तिहार नोहे। वोमा छत्तीसगढ़ के भाव-तत्व हावय। छत्तीसगढिय़ा मनखे भाव म जीथे। वोहा सिरिफ भाव के भूखा होथे। जब हमन ल कोनो के सहयोग, सहायता मिलथे तब हम औपचारिक अउ अनौपचारिक ढंग ले वोकर बर आदर के भाव रखथन।
सा माजिक परंपरा म मनखे एक-दूसर के काम आथे। एक-दूसर के मदद के बिना काकरो काम नइ चले। कहे गे हे- ‘राजा घलो मुसर बर अटक जाथे।’ छत्तीसगढ़ के सब्दकोस म धन्यवाद सब्द नइये। छत्तीसगढिय़ा मनखे हर एके भाखा म धन्यवाद नइ काहय। वोहा कहिथे- ‘बने करेस ददा, तेहा मोर बर भागवान बरोबर आ गेस। भगवान तोर बढ़ोतरी करे।’ ये किसम ले गजब आनी-बानी के आसीस देथें। वोकर आंखी म वो अभार के भाव ल पढ़े जा सकथे। ये भाव सबो जीव-जगत म घलो दिखथे। बात इहां मनखेभर बर लागू नइ होय। यदि आप कोनो जीव के बिसम परिस्थिति म मदद करहू, तब वोकरो भीतर ले धन्यवाद के भाव दिखथे।
जब सावन के महीना आथे, चारों मुड़ा हरियरृ-हरियर बगर जथे। परकरीति झूमे-नाचे लागथे। सबो जीव-जन्तु के मन म उमंग छा जाथे। हरियर-हरियर रूख-राई जब पुरवाही के संग झूमथे, तब अइसे लागथे मानो परकरीति अपन मन के उल्लास ल बताय खातिर नाचे लागे हे। किसान के मन म खुसी अउ उल्लास के भाव दिखथे। धरती के महिमा ह परगट रूप म दिखथे। गाय-गरू के मुंहू ह घलो चिक्कन- चिक्कन दिखथे। चार महीना घाम म झोलाय जीव ह पानी के आय ले हरिया जाथे।
छत्तीसगढ़ के लोकजीवन अउ परब, परंपरा म खेती परंपरा के गजब जगा हे। एक तरह ले खेती छत्तीसगढ़ी लोक-जीवन म रसे-बसे हे। उही पाय के छत्तीसगढ़ के संस्करीति के मूल म खेती अउ जंगल के परभाव दिखथे। यदि हमन बने ढंग ले छत्तीसगढ़ के संस्करीति ल जाने बर चाहथन, तब हमन ल खेती के परंपरा अउ जंगल के बिसवास ा खंगाले ल परही। जब हम कोनो परंपरा के अंतस ल टमरथन तब वोमा बहुत अकन बात दिखथे। सियानमन कोनो परंपरा ल बनाय हे तब वोला सोच -बिचार के बनाय हे। वोमा भाव तत्व के संगे-संग बिग्यान घलो हे। बात सिरिफ जाने अउ समझे के हे। जब हम अपन परब अउ परंपरा के भाव ल जानबोन तब वोकर ले हमर जुड़ाव होही। वोकर बर सरधा अउ बिसवास के भाव जागही अउ हम परब, परंपरा ल अंतस ले स्वीकारबोन।
हरेली के तिहार ह सावन महीना के पुन्नी के दिन मनाय जथे। ‘हरेली’ के तिहार ह हमर खेती-किसानी के परंपरा से सरोखा राखथे। हरेली ह काबर छत्तीसगढ़ के जम्मो परंपरा ह कानो न कोनो रूप म खेती के परंपरा ले जुड़े हावै। इहां के सबो परंपरा म आनंद के भाव दिखथे। जब कोनो तिहार ल हम मनाथन तब वोकर परंपरा के संग एकसार हो जाथन। हरेली ह सिरिफ तिहार नोहे। वोमा छत्तीसगढ़ के भाव-तत्व हावय छत्तीसगढिय़ा मनखे भाव म जीथे। वो सिरिफ भाव के भूखा होथे।
हरेली के परब किसानमन बर बड़े परब होथे। ये दिन किसान अपन खेती-किसानी के जम्मो औजारमन के पूजा-अरचना करथे। नागर, बक्खर, कुदारी, रापा, चटवार, गैती, साबर जम्मो ल धो पोंछ के वोकर पूजा करथे। काबर ये जम्मो सामान के सहयोग के बिना वोकर कोनो काम नइ हो सके। जब हमन ल कोनो के सहयोग, सहायता मिलथे तब हम औपचारिक अउ अनौपचारिक ढंग ले वोकर प्रति आदर के भाव रखथन।
छत्तीसगढ़ के खेती-किसानी के परंपरा म अभार के भाव गजब दिखथे। ये भाव ह हमर अंतस के भाव ए। भाव हे तब आदर अउ सम्मान हे। जब हमन पखरा म भगवान देख सकथ तब जेकर ले हमर जीवका चलथे वोकर बर अभार काबर नइ मानबोन। भाव ह भजन आय। भाव ले जेला हम मानथन वो परकार ले फल घलो मिलथे।
हम जानथन हमर खेती-किसानी के जतेक अकन औजार हे वोहा या तो लकड़ी के हे या फेर लोहा के। यदि हम ऐला समे म धो-पोछ के नइ रखबोन तब ऐहा खराब हो जाही। लकड़ी सर जाही अउ लोहा म मुरचा लग जाही। ये बात ल हमर पुरखामन ह बने ढंग़ ले समझींन। इही पाय के हरेली तिहार के दिन जम्मो खेती-किसानी के औजार ल धो-पोछ के रखे जाथे ताकि वोहा सुरक्छित रहाय।

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