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साहित्य रिसि लाला जगदलपुरी

locationरायपुरPublished: Sep 21, 2021 04:50:28 pm

Submitted by:

Gulal Verma

सुरता म

साहित्य रिसि लाला जगदलपुरी

साहित्य रिसि लाला जगदलपुरी

छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा म लाला जगदलपुरी ह 17 दिसम्बर 1920 म जगदलपुर (बस्तर) म जनम लिन। वोकर ददा के नाव रामलाल अउ दाई के नाव जीरा बाई रिहिस। छोटे भाई केसव लाल सिरीवास्तव, सुदरसन लाल सिरीवास्तव, छोटे बहिनी रुक्खमनि बाई सिरीवास्तव आय।
लालाजी के पीडी नाव सेतलाल रिहिस, फेर घर के सियानमन मया म लाला राम सिरीवास्तव कहय। अपन नाव लालाराम सिरीवास्तव के सिरीवास्तव ल हटा के जगदलपुरी ल मिलाइच अउ देस-दुनिया म लाला जगदलपुरी के नाव ले परसिद्ध होइस। जगदलपुर ल पहिली ‘गढ़सहर’ कहत रहिन। पूरा सहर एकठक किला के भीतरी म हवय। डोकरीघाट पारा ह किला ले लगे हे। डोकरीघाट पारा ह राजमहल के उत्ती कोती ले लगे हवय बस्तर के जीवन रेखा इन्दरावती नदिया के तीर म हवय। इही पारा म लालाजी के घर हवय। साहित्य जगत म जगदलपुर सहर के चिन्हारी लाला जगदलपुरी के नाम ले होथे। रियासतकाल म लालाजी महारानी अस्पताल जगदलपुर म कम्पाउंडर के बुता करत रहिस। 1950 के पहिली ये नउकरी ल छोड़ दिस अउ पूरा साहित्य जिनगी म लग गे।
लालाजी साहित्य जिनगी म अतका लगे रहिस कि अपन बिहाव घलो नइ कराइस अउ अपन भाईमन के संग बडक़ा परिवार म अपन जिनगी ल बिताइस। लालाजी 1936 ले जब 16 बछर के रहिस तब साहित्य लिखे के सुरू करिन अउ 1939 ले देस के परतिस्ठित पतरिकमन उंकर कविता, बस्तर ऊपर मौलिक अउ परामानिक लेखमन परकासित होय हवय। लगभग 68 बछर के साहित्य साधना म लालाजी हिंदी के संगे-संग छत्तीसगढ़ी अउ हल्बी, भतरी म घलो साहित्य सिरजन करय। बस्तर ऊपर लालाजी के किताब के परामानिकता के सेती आनेच महत्व हवय।
परमुख रचनाएं
कविता, गजल संग्रह, मिमियाती जिंदगी दहाड़ते, आन्दोलन, हमसफर, आंचलिक कविताएं, जिंदगी के लिए जूझती गजलें, गीत.धन्वा, बस्तर : इतिहास एवं संस्कृति, बस्तर लोक कला- संस्कृति प्रसंग, बस्तर की लोकोक्तियां, लोक कथा संग्रह, हल्बी लोक कथाएं, वनकुमार और अन्य लोक कथाएं, बस्तर की मौखिक कथाएंं, बस्तर की लोक कथाएं। अनुवाद: प्रेमचंद चो बारा कहनी, बुआ चो चिठीमन, रामकथा, हल्बी पंचतन्त्र।
गियान के बगरावत हे उजियारा
14 अगस्त 2013 म लालाजी हमर बीच नइ रहिन। फेर उंकर रचनामन ह आज घलो गियान के उजियारी बगरावय हावय। लाला जगदलपुरी के जिनगी के बारे म किताब साहित्य सिरी लाला जगदलपुरी समग्र ल कोंडागांव के रहइया साहित्यकार हरिहर वैष्णव ह सुग्घर ढंग ले लिखे हे।
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