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आखिर भासा के फंदा ह कब छूटही

locationरायपुरPublished: Sep 27, 2021 04:31:58 pm

Submitted by:

Gulal Verma

बिचार

आखिर भासा के फंदा ह कब छूटही

आखिर भासा के फंदा ह कब छूटही

धरती म पहली मनखे आइन तेकर पाछु उनकर बोली-भाखा फूटिन अउ मुहाचांही होय लगिन। लोगनमन भोजन, रोजी-रोजगार सेती बगरिन अउ एक- दूसरर संग मिझरिन। धीरे -धीरे कुछेक लोगन घनवंता, गुनवंता होगिन। राज-पाट, मठ -मंदिर, आसरम बनाइन। इहां के भासा- बोलीमन परसंस्करन (मानकपन) होय लगिन। लिपि के बने ले इही ह राजकाज अउ सास्त्र आदि के भासा बनिस।
माने कि लोक भासा आदिमकाल से उतरित हे। उही ह छन के परसंस्करन होके लिपिबद्ध होय लगिस। पाली, पराकरीत (प्राकृत), संस्करीति (संस्कृत), फारसी, लेटिन, इंग्लिस चाइनिज अउ दूसर सास्त्रीय ( क्लासिक) भासा बनिस। ऐमन उदुक ले अवतरे के बाद पल्ला भागे बर लगिस अइसे नइये, भलुक धीरे-धीरे इनकर बढोतरी होय लगिन। ते पाय के गुनवंतामन कहिथें – ‘भासा के लाइन से बिकास ल समझे अउ समझाय ल परथे। कोनो भी रूढ़-मूढ़ मान्यता ल माने से बुता नइ बनय।’
सिरतो कहे तो कोनो भी भासा ह अलौकिक या दैविय नोहय, वोहा इही लौकिक अउ जमीनी जिनिस होथे। जेन लोक म नाम्ही नायक होथे वोकर चरित प्रेरक हो जथे। वोकर गुनगान होय लगथे या जो समुदाय सासक वर्ग होथे वोकर आचार- बिचार बनथे, लिखित म आथे वोहा समरिद्ध हो जथे। तहां ले वोकर महिमामय बरनन करे के रिवाज तको बन जाथे।
भासा के परसंस्करन अउ समरिद्धि ह सरलग चलइया उदिम आय। हमर हिंदी ह दिल्लीअउ मेरठ के बीच राज-काज मलगे मनखेमन के स्थानीय बोली अउ सासक वर्ग के अरबी, फारसी से उगरे उर्दू भासा के मिझंरा सरूप आय। ऐकर सरूप हमन ल अमीर खुसरो से ले के मध्यकालीन संत कवि परंपरा म दिखथे। फेर, सच कहे त हिंदी ह 1857 के करांति के बाद संपर्क भासाा के रूप म स्थानीय साासक अउ परभावशाली लोगन के बीच बौराय से आइस। भासा अउ संस्करीति म घलो गंगा-जमुना साझापन आजो ले दिखथे अउ इही हमर पहिचान बन गे हे।
भारतेन्दु से लेकर परेमचंद तक उतरोत्तर बिकास होय लगिन। हमर छायावाद के पंत, परसाद से लके परयोगवाद अग्येय (अज्ञेय) मुक्तिबोध जइसे नाम्ही कवि लेखकमन बड़ सुग्घर सरूप दिस। संगे-संग कतकोन पत्र-पत्रिका अउ आकासबानी, फिलिममन हिंदी ल सात समुन्दर पार पहुंचाइन। आज हिंदी ह सलबे जादा बोले जवइया भासा के रूप म परतिस्ठित होय के अवस्था म हवय। फेर, ऐहा अभु घलो रास्टर भासा नइ बन पाय हे, ऐहा बड़ दुख के बात आय।
असल म हर राज्य के भासा ल राजभासा अउ बहुसंख्यक समुदाय अउ स्वतंत्रता संगराम के समे संपर्क के भासा हिंदी ल रास्टरीय भासा घोसित करे के गंभीर परयास होना चाही। अंगरेजी ह दुनिया के अउ आधुनिक गियान-बिग्यान के भासा के रूप म परतिस्ठि हवय त वोला उही सरूप म अंगीकार करे जा सकत हे, भलुक कर चुके हंन।
अब पाठ्यक्रम म रास्टरीयस्तर म तीन भासाई सिद्धान्त हवय। ऐमा रास्टरीय भासा हिंदी, राजभासा जइसे पंजाबी, तमिल, मलयालम, मराठी, उडिया, छत्तीसगढ़ी, असमिया ह राज के भासा अउ अंतररास्टरीय संपर्क भासा अंगरेजी म बनाय जाय। पराचीन क्लासिक भासा, पाली, पराकरीत, संस्करीति, अरबी, फारसी आदि ल ऐच्छिक रखे बर चाही।
अइसे करे ले स्थानीय राजकीय भासा मन के साथ संस्करीति ह तको जतनाही अउ परतिभा के समुचित बिकास होही। नइते महतारी भासा (मातृभाषा, राजभाषा) ल छोड़ अउ भासा म नान्हे लइकामन ल सिक्छा दे जाही त अपन सीखे, समझे के उमर 14-15 बछर तक वोहा भासा के चक्कर म फदके परे रइही। स्कूल अउ घर के भासा के चक्रव्यूह म फंस के रहि जाही। छत्तीसगढ़ के बात करे जाय त अबतक इहां ने छात्रमन न हिंदी के होय सकय, न संस्करीत के न अंगरेजी के। तेन पाय के अखिल भारतीय स्तर म परतिभा के कमती सिरिफ भासाई रूप म ही झलकथे अउ आत्मबिसवा के कमती के सेती सासन-परसान प्रशासन म पिछवाय सरीख नजर आथे।
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