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अन्नदातामन के अउ कतेक दुरगति होय बर बाचे हे!

locationरायपुरPublished: Oct 18, 2021 05:03:19 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का- कहिबे

अन्नदातामन के अउ कतेक दुरगति होय बर बाचे हे!

अन्नदातामन के अउ कतेक दुरगति होय बर बाचे हे!

मितान! किसान अउ भुइंया के नता ह देह अउ परान बरोबर हे। किसान नइ होही त खेत-खार बंजर हो गई अउ खेत-खार नइ होही त किसान बिन मारे मर जही। किसान अन्नदाता होथे। वोहा अन्न उपजाथे त अपन संगे-संग लाखों-करोड़ों लोगन के घलो पेट भरथे। फेर, वाह रे जमाना! आज न किसान के गत रहिगे, न खेत-खार के। दूनों के दिनोंदिन दुरगति होवत हे।
सिरतोन! अब तो हमर देस के धरती ह हीरा-मोती (फसल) नइ उगलत हे, बल्कुन लोहा-स्टील (कारखाना) उलगत हे। चारों मुड़ा कारखानेच-कारखाना दिखई देथे। हमर देस ल खेती-किसानी के देस माने जाथे। इहां जय जवान-जय किसान के नारा लगाय जाथे। किसान कभु छलकपट, धोखाधड़ी, ठगी, छीनाझपटी ल नइ जानंय। अपन भूखन रहिके दूसर के पेट भरे बर जानथे। किसान ल गउ बरोबर जान। फेर, आज देस के किसानमन ल अपन खून-पसीना ले उपजाय फसल के वाजिब भाव के खातिर धरना-परदसन, आंदोलन करे बर परत हे।
मितान! करांति अउ आंदोलन ह बडक़ा सब्द हे। ये दूनों अचानक नइ घटय। अइसे ऊपर से लगथे के करांति अचानक होगिस। कोनो भी आंदोलन या फेर करांति के आगी ह धीरे-धीरे सुलगथे अउ एक दिन ज्वालामुखी कस फूट जथे। इतिहास गवाह हे, फरांस के करांति होवय चाहे बोल्सेविक के या फिर हमर देस के अट्ठारह सौ सत्तावन के। अइसने हमर देस म ‘किसान आंदोलन’ धीरे-धीरे करके बाढ़त जावत हे।
सिरतोन! आजकल तो सत्ता के नसा म किसानमन ल आतंकवादी, देसदरोही कहइयामन के घलो कमी नइये। सत्ता म बड़े-बड़े पद म बइठे कतकोन नेतामन लोकतंत्र के मरयादा के पालन नइ करत हें। खेती कानून के विरोध करइया किसानमन ल सबक सिखा देबोन काहत हें। वइसे घलो आज के जमाना म जादाझन नेतामन के इही सोच हे -‘अपना काम बनता, भाड़ म जाय जनता।’
मितान! तीन खेती कानून ल सरकार ह अपन नाक के सुवाल बना ले हे। किसानमन के आगू म झूके बर तइयार नइये। अन्नदाता किसानमन ल धमकाय-चमकाय जावत हे। लगाथे सरकार ह खेती-किसानी ले बेपारीमन के हित करे बर चाहत हे! किसानमन के हित चाहतिस त फेर वोकरमन के बात ल काबर नइ मानतिस? जब किसानमन काहत हें खेती कानून ह न वोकरमन के हित म हे, न खेती-किसानी के, त फेर सरकार ह काबर अड़े हे? लखीमपुर खीरी म किसानमन संग जउन होइस हे तेन ल सबो देखिन हे।
‘मोर चलव रे बैला नांगर के, हम तोर कमाबो जांगर रे। धरती मांगय मेहनत पानी, जनम-जनम के इहि कहानी, हम तो करबो मेहनत संगी, पानी के मालिक बादर रे।’ भारत भुइंया म आज किसानमन के हाल ह घानी कस बइला होगे हे, त अउ का-कहिबे।
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