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अब जिनगी के सहारा होगे भुइंया ह

locationरायपुरPublished: Oct 25, 2021 04:33:24 pm

Submitted by:

Gulal Verma

बिचार

अब जिनगी के सहारा होगे भुइंया ह

अब जिनगी के सहारा होगे भुइंया ह

मनखेमन के जिनगी के सबले बड़े आधार भुइंया (जमीन) हरे, तेला सबेझन जानथें। फेर, भुइंया के महत्तम बर सास्त्र, साहित्य अउ बिग्यान कोनो बिसय म बने असन कुछु नइ लिखे गे हे। जबकि भुइंया के बारे म महागरंथ लिखे जा सकत हे। भुइंया ल जायदाद बरोबर माने गे हे। वोला मालिकाना हक, नजूल, लीस, पट्टा, लाइसेंस अउ रायल्टी समझे जाथे। एकठन हाना हे- जर, जोरू अउ जमीन। माने संपत्ति, घर गोसइन अउ भुइंया ल एके माने जाथे। भला मनखे ल भुइंया ले जुड़े आदमी कहे जाथे। ये धरती ल दुनिया के सबो देस म पूजे जथें। अवइया बेरा म भुइंया ह जिनगी के सबले बड़े आधार होही। भुइंया ले उपजे चीज ह सहारा बनही। तेकर सेती उपज ले जुड़े उद्योग ह बाढ़ही।
कोविड-19 लेे पता चलगे कि खाये-पीये के सामान ह सबले बढ़ के हे। अनाज, तिलहन, दलहन, साग-भाजी, फल के जादा जरूरत ह उजागर होइस। ये समे म अनाज ले बढक़े मसीन ह होगे। मोबाइल, कम्प्यूटर, लैपटाप, मोटरगाड़ी अउ कईठिन मसीन ले जुड़े सामान ल अनाज ले बढक़े माने लगिन। अभी कोविड-19 के बेरा म खाय-पीये के सामान के छोड़ अउ सबो सामान के बिकरी कम होगे। फेर, चाउर दार, किराना, साग-भाजी अउ फल के बिकरी जस के तस हावंय, बल्किन अउ बाढग़े। अब हमन ल सबक मिलिस कि धरती के कोनटा-कोनटा तक ल उपयोग करे ल परही। हमर देस के आबादी ल धियान म रखके खेती के भुइंया ह कमती होवत जावत हे। अब बंजर भुइंया ल उपजाऊ बनाय बर चाही अउ परिया परे सबो भुइंया ल खेती के लइक बनाय बर परही।
हमर देस के भुइंया के एक बड़े हिस्सा ह फोकट परे हे। पहली हमर देस म आबादी ह कम रिहिस त सरकारी बंगला, दफ्तर अउ आने सरकारी मकान ल बड़ेजन भुइंया म बनाय जाय। अंगरेजमन के जमाना म ठाठ-बाठ ले रेहे के टकराहा रिहिन। फेर, आजादी के बाद परजातंत्र म घलो अधिकारी, मुखियामन के बंगला ह पहली असन जस के तस हे। अइसन भुइंया ल देस के हित म बरोबर उपयोग करे जा सकत हे। ऐकर दू परकार ले उपयोग हो सकत हे। पहिली ऐला ऊंचा दाम म नीलाम कर दे जाय त उद्योगपति, बड़े बेपारी अउ दूसरमन हाथों-हाथ खरीद लेहीं। देस के गांव-सहर म खास जगा म रहत ये भुइंया ल बेचे ले खरबों रुपिया मिलही, तेमा सरकार के खजाना लबालब हो जाही। दूसर तरीका ये हे कि कहू उद्योगपतिमन ये भुइंया म कल-कारखाना लगाही त परदूसन के खतरा बाढ़ जाही, तेकर सेती ऐला बेचे के बजाय भुइंया म चारों डहर फलदार रूख-राई लगाय बर चाही। ऐकर ले खाये के आधा समस्या कम हो जाही। लोगनमन ल सस्ता म फल मिलही।
अब दुनियाभर म बहुमंजिला मकान बनाय के जोर हे त बड़ेजन बंगला के बदला म सबे बंगला अउ दफ्तर ल एके जगा जुरिया के बहुमंजिला मकान बनाय बर चाही। त लोगनमन ल घलो सुभित्ता होही। हमर देस म हर बछर पौधा लगाय जाथे। जेमा सुंग्घरता वाले पेड़ जइसे- गुलमुहर, असोक, चंपा, मदनमस्त अउ आने। ऐकर जगा म सबो जगा आमा, जाम, लिमऊ, बेल, चिरईजाम, सीताफल, लटर्रा, करउंदा लगाय बर चाही। जगा के जलवायु अउ भुइंया के मुताबिक फलदार पेड़ ल चारों डहर बगरा देय बर चाही।
आज के समे म जंगल म रूख-राई (खासकर फलदार) के कमी होवत जात हे, ते पाय के बेंदरामन खाय के सामान खोजे बर गांव अउ सहर तको म भटकत रहिथे। बेंदरामन साग-भाजी, फल, अनाज सबे ल नास करथे। गांव म छानही वाला घर म कूदथें-फांदथे ते पाय के अड़बड़ नुकसान होथे। फलदार पेड़ जंगल म लगे रइही त बेंदरामन ऐती-ओती नइ भटकंय। बल्किन, जंगल म मखना, तुमा, तरोई, कुंदरू, बरबट्टी के नार लगाय चाही, जेकर ले बेंदरामन के खाय के इंतजाम हो जाय अउ बनवासीमन ल घलो साग-भाजी के सुभित्ता हो जाय।
मोला एक घांव साहित्य सम्मेलन म तासकंद जाय के मउका मिले रिहिस। त उहां एकठन बात ह अपनाय के लइक पता लगिस कि उहां चारों डहर फलदार रूख-राई होथे। जेकर बीजा ह हर बछर झरथे, फेर आन दरी दुगुना मात्रा म पेड़ लग जथे। ये तरह जम्मो डहर फलदार पेड़ेच-पेड़ दिखथे। जइसे- आलूबुखारा, दरमी, सहतूत, आडू, सेब, नासपती, अनानास अउ आने। उहां बड़ा अचरज होइस जब बिहानचेकुन भुइंया म फल हर चारों डहर कचरा जइसे बगरे रिहिस। जेला बहारत-बहारत सफई करमचारीमन परेसान होगे रिहिन। उहां घरो-घर अंगूर के नार लगे रहिथे। अंगूर के नार ले घर के पोर्च म छांव होथे। घर के बाहरी भितिया म अंगूर के नार चारों डहर ओरमे रहिथे। जेकर ले घर ह सुग्घर दिखते अउ फलदायी घलो होथे। अइसने हमरो देस म होय बर चाही।
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