सुवामी किरिस्नारंजन (सांतानंद महराज) ह 6 अपरेल 2018 बइसाख अंधियारी पाख के बरम्ह मुहूरत म सरग सिधार गिस। वोहा उच्चकोटि के साहित्यकार, कवि, लेखक, पत्रकार, चिंतक अउ भागवत परवचनकार रहिन। वोहा छत्तीसगढ़ के एकेझन दारसनिक साहित्यकार रहिन। उंकर अध्ययन अतेक ब्यापक रहिस के गियान के कोनो छेत्र पहुंच ले बाहिर नइ रहिस। बहुमुंखी परतिभा के धनी सुवामी ल वोतका स्रेय नइ मिलिस जेकर वोहा वाजिब हकदार रहिन।
किरिस्नारंजन के पीढ़ी के साहित्यकार म पवन दीवान, रवि सिरीवास्तव, लछमन मस्तुरिया, पुरुसोत्तम अनासक्त, नारायनलाल परमार, त्रिभुवन पांडे, विसाल राही, छबिलाल असांत, नारायन सांत के नांव परमुखता से लेय जा सकथे। ए पीढ़ी के बिसेसता रहिस के इंकरमन से समाज ल उच्च कोटि के साहित्य मिलिस। काबर के ऐमन जेन भी भासा म साहित्य रचिन वो भासा के पूरा जानकारी रखइया रहिन। तेकरेे सेती आज उंकरमन के नांव रास्टरीय इस्तर के साहित्यकार के रूप म लेय जाथे। आजकल के लिखइयामन कस नइ, जेला भासा के कुछु गियान नइये। फेर, चार लाइन उल्टा.- सीधा लिख के कवि, साहित्यकार कहाय के सउख पूरा करे बर चाहथें। ऐकरेमन ले पाय संस्कार के परसादे एकांत सिरीवास्तव आज रास्टरीय इस्तर के अगुवा कवि, साहित्यकार माने जाथे।
किरिस्नारंजन अकेल्लाा अइसे साहित्यकार रहिन जेमा सही ल सही अउ गलत ल गलत कहे के साहस रहिस। वोहा झूठमूठ के वाह-वाह करइया नइ रहिन। रचनाकार बड़े होय या छोटे गलती ल मुंह उप्पर टोकई वोकर बस के बात रहिस। वइसने अच्छा रचना के दिल खोल के तारीफ करई ल घलो कोन नइ जानंय। चाहे वो रचनाकार कतको छोटे कस काबर न राहय।
किरिस्नारंजन अद्भुत मनखे रहिन। छत्तीसगढ़ के आज के नामी साहित्यिकारमन ल घलो उनला अपन साहित्यिक
गुरु माने से परहेज नइ होवय। अभी तक रंजनजी के दारसनिक रूप कोती ककरो धियान नइ गे हे। भविस्य म जब उंकर रचना के पुनर अवलोकन होही तब दारसनिक रूप के घलो जरूर ब्याख्या होही। उंकर परकासित रचना म सत्यम् सिवम् सुंदरम्, संगमरमर की औरत, सून्यम्, हम कहां हैं अउ विविधास हे। वोकर जवई अइसे नुकसान हे जेकर कभु पूरती नइ हो सकय। वोहा हमर सुरता म हरदम जिंदा रइहीं।