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माटी के दीया

locationरायपुरPublished: Nov 05, 2018 07:52:42 pm

Submitted by:

Gulal Verma

संस्करीति

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माटी के दीया

मा टी के बने जिनिस संग मनखे के जुन्ना नाता हवय। देवारी तिहार के आत-आत माटी के दीया के पूछ परख बाढ़ जाथे। माटी के दीया के बिना देवारी तिहार मनाय के बारे म कोनो सोच नइ सकय। रंग-रंग के बिजली के झालर आ गे, मोमबत्ती आ गे, फेर माटी के दीया के बिना देवारी तिहार ह ‘पानी के बिना नदियाÓ कस हो जाही।
माटी के दीया बनइया कारीगरमन ल कोहार (कुम्हार) कहिथें। फेर आजकल कोहारमन के जिनगी ले माटी के नाता ह टूटत जावत हे। काबर कि पसीना ओगरत ले महिनत करे के बाद माटी के जिनिस बनाय म आय लागत ल गिराहिक ले पाना कोहार मनबर मुड़ पीरवा कस काम होगे हे। इही पाय के कतको कोहार परिवार अब माटी के मया ल छोड़ के दूसर काम-धंधा ल करे लागिनन हवय। ऐहा गुने के बात आय। काबर कि माटी ले कोहार के दूरियाना अपन परम्परा, संस्करीति और परब ले दूरियाना आय।
माटी के दीया ह हमन ल भुइंया ले जोरे राखथे। एक घांव माटी के दीया अउ बिजली के झालर म तू- तू, मय-मय होगिस। झालर ह दीया ल कहत हवय कि नवा जमाना म तोर पूछइया कमतियात हवंय। तोर ठिकाना गरीब गुजारा झोपड़ी अउ खोर-गली म हवय। मोर जगह महल अउ दाउ-गउंटिया के घर म हवय।
ए बात ल सुनके दीया मुंच ले मुसका दीस अउ बोलिस- पूजा के बेरा म पूजा थारी म मोला जगह मिलथे। तोला नइ मिलय समझे। झालर भइया जादा इतरा झन। जादा इतराइ अउ तपई माने घमंड करइया ल एक न एक दिन मुड़ नवाय बर परथे। हमर सियानमन ए बात ल कहे हवय कि ‘अंहकारÓ म तीन गए ‘धन, वैभव अउ वंस, न मानो तो देख लो कौरव, रावन अउ कंसÓ। अइसन बात ल गुनत पढ़त इहू बात ल धियान रखने बर चाही कि कारतिक अमावस के रात म झिलमिलावत माटी के दीया ह कुलुप अंधियार के छाती ल चीरत अंजोर बगराथे। हवा, गरेर के डर दीया ल नइ रहय। वोहा अपन काम ल पूरा जवाबदारी के संग पूरा करथे। इही संदेसा ल अपन मन म बैठार के मनखेमन ल देवारी तिहार मनाय बर चाही। अउ, एक-दूसर के जिनगी म आय अंधियारी के बेरा म आगू बढ़के दीया कस अंजोर बगराय बर चाही।

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