धान के बढ़ोना
रायपुरPublished: Dec 18, 2018 07:32:17 pm
संस्करीति
छत्तीसगढ़ के जादा संस्करीति अउ परंपरा ह खेती-किसानी ले जुड़े हावय। धान के कटोरा के नांव ले जगभर म सिद्ध छत्तीसगढ़ म धान ल अन्नपूरना के रूप म मान बढ़ाय बर कदम-कदम म पूजा-पाठ करे जाथे। सबले पहिली धान के बोआई के पहिली बइसाख महीना म अक्ती परब के दिन दोना म धान भरके गांव देवता, ठाकुरदीया म चढ़ाथें। बइगा के पूजा करे के बाद म दोना के धान ल किसानमन अपन-अपन खेत म लेगथें। उहां पूजा-पाठ करके दोना के धान ल बीजहा बो के बोआई के मुहरत करथें।
बीजहा के बाद समे आथे तहां बरसा होथे। धान जागथे, बाढ़थे अउ पोट्ठाथे। पोट्ठाथे त गरभपूजा करे के परथा हे। ये पूजा ल बइगा अउ गांववालेमन मिलजुर के करथें। भादो महीना म पोरा तिहार मनाय जाथे। पोरा तिहार के पहिली रात के खेत म देवी-देवतामन के धूप-दीप बार के गरभ पूजा करथें। गरभ पूजा के थोरकिन बाद म पउधा म बाली निकलथे। तहां ले बाल बांधे के पूजा करे जाथे। ए काम ल गांव के पुजारी-बइगा ह करथे। सबले पहिली गांव के सब्बो देवी-देवतामन म धान के बाली चढ़ाय जाथे। वोकर बाद म बैगा ह घर-घर जाके धान के एक-दू बाली बांधथे।
अइसने खेत के धान ह पाक के काटे के लइक हो जथे तब हूम-धूप बार के खड़े फसल के पूजा करके कटाई सुरू करथें। अइसने सबे फसल के कटई के आखिरी दिन ‘बढ़ोनाÓ करथें। बढ़ोना के मतलब बढ़ोतरी करई होथे। वो दिन धान के कटइया सबो मनखेमन समे म खेत पहुंच जथे। खेत मालिक किसान ह हूम, धूप, गुलाल, अगरबत्ती, नरियर, पूजा के समान, मिठई, मुररा, परसाद जइसे जउन बन परथे तेन लेके अपन परवार समेत खेत पहुंचथे। खेत के एक कोनटा म धान के खड़े फसल के तीर म धूप, दीप बार के, नरियर फोड़ के पूजा करथे। फेर सबो मजदूर, किसान एक-दूसर के माथा म गुलाल के टीका लगाथें। जय-जोहार करथें। किसान ह अपन मजदूरमन ल धान फसल के एक-एक बीड़ा इनाम म देथे अउ परसाद बांटथे। तहां ले बढ़ोना बाढग़े कहिके सबोझन जय बोलाथें।
अइसने खेत ले धान के बोझा ल बियारा म लाथें त गाड़ी म फंदाय बइलामन के पूजा करथें। ऐकर बाद म किसान परवार अउ जम्मो कमिया-बनिहार बाजा-गाजा के संग घर आथें। इही परकार ले बढ़ोना बढ़ाय के ए परंपरा ह अन्नपूरना दाई के सम्मान अउ किसानमन के समरिद्धि बर पूजा करे के परतीक आय। फेर ऐहा अब्बड़ चिंता के बात आय कि अब ए परंपरा ल कतकोन किसानमन ह बिसरत जावत हें।