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सरकार बदले ले भरस्टाचार नइ मेटाय!

locationरायपुरPublished: Jan 15, 2019 09:11:05 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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सरकार बदले ले भरस्टाचार नइ मेटाय!

मितान! बात ह जुन्ना सरकार या फेर नवा सरकार के नोहय। बात हे सासन-परसासन म रहिके जनता के लहू पिअइया ‘जोंकÓ के। का ए ‘जोंकÓ ले छुटकारा मिलही? का अधिकारी-करमचारीमन बगैर रिस्वत ले आम जनता के काम करहीं? का सासन के योजनामन म भरस्टाचार नइ होही? सरकार बदल गे, सरकार के मुखिया, मंतरी बदल गे। फेर, सरकारी अधिकारी-करमचारीमन तो उहीच हें। ऐकरमन के आदत-बेवहार, नीयत, काम-बुता ह सुधर जही ऐकर कोनो ‘गारंटीÓ तो नइये। अइसन म जनता ह अपन मुड़ी ल तो खजवाबेच करही।
मितान! हमर देस म बुराई तो जुगो-जुगो ले रहे हे, फेर अच्छाई के पुजारी, सत के रद्दा म चलइया आवत-जावत रहिथें। समाज म कुरीति, कुपरथा, कुसंस्कार घलो ह कभु नइ मेटावय। फेर बने रीति-रिवाज, परंपरा, संस्कारमन ह हब ले मेटाय बर धर लेथें। इही हाल राजनीति अउ सरकार के हे। सिधवा अउ ईमानदार नेता हो, मंतरी हो या फेर साहेब, ऐमन ल जादा दिन टिकन नइ देवंय। ईमानदार नेता ल कुरसी ले उतार देथें, मंतरी ल पद ले हटा देथें अउ साहेब-करमचारीमन के दूसर जगा बदली कर देथें।
मितान! नवा सरकार ह चुनई के पहिली करे अपन वादा ल निभाय बर लग गे हे। साहेबमन ल घलो ऐती ले वोती करत हें। मोला ए समझ म नइ आवत हावय के जेन साहेबमन ह जुन्ना सरकार बर ‘गिनहाÓ रिहिन, वोमन नवा सरकार बर ‘बनेÓ कइसे होगिन? साहेबमन ल ‘हटाय-बइठाय, धुतकारे-पुचकारे,Ó के अधार का होथे? का साहेबमन सरकार चलइयामन के ‘आदमीÓ होथें? जब गिनहा रिहिन होही तभे तो हटाय गे रिहिस होही। एक बर गिनहा, दूसर बर बने। एक बर मां, दूसर बर मौसी। कहुं ऐहा ‘दाग घलो ह बने लगथेÓ जइसे किस्सा तो नोहय! साहेबमन के ‘दागÓ ह सरकार बदलतभर ले काबर? ए ‘साहेब बदलईÓ के खेल ह चलतेच रहिथे। जुन्ना सरकार घलो ह ए खेल ल अब्बड़ खेले रिहिस।
मितान! आज चिंता के बात ए हावय के कोनो मनखे अपनआप ल भरस्ट या बेईमान नइ मानंय। गांव-गांव के पंच-सरपंचमन घलो ‘बिल्ली ताके मुसवा, बारी म सपट केÓ जइसे ‘दू नंबरÓ के पइसा ल जोहत रहिथें। कतकोनझन जनपरतिनिधिमन तो सिद्धो-सिद्धो कहिथें के चुनई लड़े म जउन खरचा करे हंन, वोला तो उमचाबेच करबोन। दू के चार का, दू के दस बनाबोन। का फोकट बर नेता बने हन जी! जब बड़े-बड़े नेता, मंतरीमन कमातव हें त हमन ‘कोन खेत के मुरईÓ अन। इही हाल सरकारी बिभाग म काम करइया अधिकारी-करमचारीमन के हे। पटवारी-चपरासीमन तको करोड़पति होगे हें। वोकरोमन के उहीच सोच, जब ऊपरवालेमन खावत हें, त हमन काबर नइ खाबोन।
मितान! ए सच ल जान के तो मोर ‘दिमाग के बत्ती गुलÓ होगे। त का कभु भरस्टाचार नइ मेटाही? इही गोठ-बात करत दूनों मितान अपन-अपन रद्दा चलते बनिन।
जब भरस्टाचार ह मनखे-मनखे म खुसर गे हे। राजनीति ह पइसा कमाय के धंधा बन गे हे। भरस्टाचार ह सिस्टाचार होगे हे, त अउ का-कहिबे।
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