script

भौंरा-बांटी, गोंटा-पिट्ठूल ल कइसे जानहीं!

locationरायपुरPublished: Feb 27, 2019 07:18:45 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

cg news

भौंरा-बांटी, गोंटा-पिट्ठूल ल कइसे जानहीं!

हमर परदेस म लोक खेल नदावत हे। किरकेट ह बिजरावत हे। दांत निपोरत हे। किरकेट के जादू ह अइसन छागे हावय कि, सहर तो सहर, गांव-गंवई के लइकामन घलो सचिन, धोनी, सहवाग, विराट, रोहित बने के सपना देखत हें। जेकरमन करा बेट-बाल नइये तेमन पटिया ल बेट अउ कपड़ा-तपता ल गेंद बनाकर के खेलत हें। लइका-सियान सबो टीवी म किरकेट मेच देखे म मगन हें। किरकेट म बोहाय आज के लइकामन भौंरा, बांटी, पिट्ठूल, रेसटीप, गिल्ली-डंडा, लंगरची, डंडा-पचरंगा जइसन अपन पारंपरिक लोकखेल ल आखिरकइसे जान सकहींं?
पुरखा ले चलत आवत खेलकूद ल खेले बर, जाने बर लइकामन के जनमसिद्ध अधिकार हे। फेर, जब दाई-ददामन खुदे किरकेट देखत हें, किरकेट के गोठ-बात करते हें, लइकामन बर बेट-बाल खरीद के लावत हें। लइकामन के सचिन-धोनी बने के सपना देखत हें। अइसन म वोमन बेट-बाल धरा के लइकामन ल लोकखेल ले दूरिहा देथें। दाई-ददामन अपन नानपन म खेले-कूदे खेल ल घलो खेले बर लइकामन ल न काहंय, न सिखावंय। कबड्डी, खो-खो जइसन खेल ह घलो इसकूल भर म होथे।
हमर परदेस म सबो मउसम म खेले बर लोकखेल हे। फेर, लइकामन कतकोन खेल के नांव घलो नइ जानंय। कोनो-कोनो खेल ल जानथें त कइसे खेलथें तेनो ल नइ जानंय। सहर ले दूरिहा-दूरिहा के कोनो-कोनो गांव म अनपढ़ लइकामन कभु-कभु बांटी, भौंरा, गिल्ली-डंडा जइसे दू-चारठीन खेल भर खेलत दिख जथे। उहू अनपढ़ लइकामन लोकखेल ल कइसे खेलथें तेला भले झन जानंय फेर किरकेट कइसे खेलथें तेन ल खच्चित जानथें।
लोकखेल के नदई बर किरकेट अउ किरकेट खेलइया लइकामन ल दोस देवई ह ठीक नोहय। काबर के लइकामन तो माटी के लोंदा होंथे, वोला कांही बना ले, कइसो बना ले, वोइसने बन जथे। जब आज के लइकामन बाप-पुरखा म पिट्टूल, डंडा-पचरंगा, चुरी लुकउल, गोंटा जइसे लोकखेल कोनो ल खेलत नइ देखत हें, त भला वोमन कइसे जान पाही के वोकर दाई-ददा, कका-काकी, ममा-मामीमन कउन-कउन खेल खेलंय, कइसे खेलंय, खेलमन के का-का नांव हे, कतका-कतका झन मिलके खेलथें। किरकेट ह चारो मुंड़ा हरियाये हे अउ लोकखेलमन काड़ी कस सूखा गे हे।
लोकखेल के नांव सुने, वोला खेले म आजकाल के लइकामन मुंह बिचकाथें। किरकेट नइ खेलहीं त मोबाइल अउ टीबी के गेम खेले बर धर लेथें। जेकर लइका कोनो किरकेट मेच जीत के आथे त वोकर आस-परोस म मान-गउन बढ़ जथे। वोकर दाई-ददा के नांव ल पाछू, किरकेट खेलइया लइका के नांव ल पहिली लेय बर धर लेथें। अइसन म लागथे वो दिन दूरिहा नइये जब हमर परदेस के लोकखेल ह नदा जही। कका दाई-ममा दाई के कहिनी कस अवइया समे म लइकामन लोकखेल के बारे म सुनहीं भर। जब लोगनमन किरकेट भर ल खेल मानें बर धर लेंहे। अपन लइका ल सिरफ किरकेट खिलाड़ी बनाय के धेय हो गे हे। लोकखेल के कोनो चिंता नइ करत हें, त अउ का-कहिबे।

ट्रेंडिंग वीडियो