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‘डाटाÓ पाइन त, बहुत कुछ पालिन !

locationरायपुरPublished: May 29, 2018 06:32:14 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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‘डाटाÓ पाइन त, बहुत कुछ पालिन !

सियान कहिस – भोजन के बाद मनखे के सबले बड़का जरूरत होथे परेम के। मनखे के दिमाग म परेम के बीजा उही दिन पिकरी फूट जथे जब भगवान ह वोला पइदा करिस। फेर, बड़ दुख के बात आय के परेम ह जात, धरम, देस म सिमट के रइ गे हे।
नवा-नवा नेता बने जवनहा कहिस- बबा! दूसर मनखेमन के बात तो नइ जानन, फेर नेतागिरी चमकाय, पदवी पाय अउ चुनई जीते बर न जेवन के जरूरत परय, न परेम के। आजकाल ऐकर बर सिरिफ जरूरत परथे त ‘डाटाÓ के!
सियान बोलिस- बेटा! ए डाटा-डाटा काये, ए डाटा-डाटा? जवनहा ह हांसत कहिस- बबा! आज के नान-नान लइकामन अपन रेंमट पोछे बर भले नइ जानंय, फेर ‘डाटाÓ के बारे म सब जानथें। फेर, नेतामन के तो झन पूछ। वोकरमन के नजर ले कोन बांच सके हे, जेमा ‘डाटाÓ ह बांचही! चुनई जीते बर अब ‘डाटाÓ ल वोमन ‘तारनहार, भाग्यबिधाताÓ समझे बर धर ले हेें।
अकबकाय बानी सियान कहिस- लागथे अब के परेमी-परेमिका अउ पहिली के परेमी-परेमिकामन म जउन फरक रहिस, उही फरक पहिली के नेतागिरी अउ अब के नेतागिरी म हे। पहिली के परेमीमन परेम के देखावा नइ करत रहिन। आजकाल के मन तो ‘ढोलÓ जादा पीटथें। इही हाल नेतागिरी के हे। ईमानदारी अउ नैतिकता तो आज के राजनीति म ‘गदहा के सींगÓ बरोबर नदा गे हे। पहिली नेतागिरी के मायने देस अउ जनता के सेवा करई होवय। नेतामन म सेवा भाव रहय। अब तो राजनीति ह पइसा कमाय के बेपार बन गे हे। चुनई जीते बर ‘लाखों रुपियाÓ लगाव अउ जीते के बाद ‘करोड़ों रुपियाÓ कमाव।
जवनहा नेता ह गियान बघारत कहिस – बबा! अब तो नान-नान नेतामन घलो जान गे हावंय के चुनई जीते बर ‘डाटाÓ खच्चित जरूरी हे। ‘सोसल मीडियाÓ म लाइक्स कइसे खरीदे जाथे? बिरोधी नेता अउ वोकर दल के खिलाफ कइसे गलत-सलत बात फइलाय जाथे। कतकोन ठलहा-निठल्ला मनखेमन के तो ऐहा धंधा-पानी बन गे हे। जेन जतके गपेड़ू-फेंकू हे, वोहा वोतके जादा पइसा कमावत हे।
सियान ह खिसियावत कहिस- त तुंहरमन के कोनो बेला-बिचार नइये। तुंहरमन के बात ल मानहीं, तेमन धारे-धार बोहाहीं। तेकरे सेती देस के आज ‘बारा हालÓ होवत हे। गरीब जनता मरत हे अउ नेतामन पोट्ठावत हें। अरे, सुवारथियों- ललचिहों अपन नइ, देस अउ देसवासीमन के फिकर करव। भगवान के घर देर हे, अंधेर नइये। जइसे करनी करथे, वोला वइसने भुगते बर परथे। लोकतंत्र म जनता ह मालिक होथे अउ नेता ह सेवक। सेवक ह जादा दिन मालिक बन के नइ रह सकय। जब मालिक जागही त सेवक ल अपन अउकात के पता चल जही। न वोहा ‘घर के रइही, न घाट के।Ó
सियान के अतेक बात ल सुन के घलो वो नवेरिया नेता ल कुछु बात-बानी नइ लागिस। उल्टा ‘रहन दे तोर गोठ ल बबाÓ, कहत अपन रद्दा चलते बनिस।
जब कुछु भी उदिम करके चुनई जीतई ह धरम-करम बन गे हे। नेतामन से भलई के कोनो उमीद नइ दिखत हे। जनता ह सिरिफ भगवान भरोसा रइ गे हे, त अउ का-कहिबे।
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