रायपुर

दुनिया म कांही निसानी छोड़व

का-कहिबे…

रायपुरJun 06, 2018 / 06:14 pm

Gulal Verma

दुनिया म कांही निसानी छोड़व

‘इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल, जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल, कोई निशानी छोड़ फिर दुनिया से डोल।Ó ए फिलिमी गीत ह वो मनखेमन ल सम्मोहित करथे, परेनना देथे, हिदरय के दुवार खोलथे जउनमन अपन आंखी, लहू अउ देह ल दान करके लोगनमन के जान बचाथें। वोकरमन के अंधियार जिनगी म अंजोर फइलाथें, जरूरतमंद के मदद करथें।
दूसर के जान बचाय ले पुन के काम दुनिया म अउ कांही नइ हो सकय। ऐकरे सेती लहू-आंखी के दान करई ल महादान कहे जाथे। लहू अउ आंखी जइसे चमड़ी (त्वचा) ल घलो दान कर सकथें। ऐकर सेे जले मनखेमन के जान बच सकही। चमड़ी नइ मिले के सेती हर बछर हमर देस म 50 हजार ले जादा जरे मरीजमन मर जथें। ऐकर सेती लोगनमन ल चमड़ी दान करे बर आगू आय बर चाही।
लहू नइ मिलने से कतकोन बीमार अउ दुरघटना म घायल होय मनखेमन के जी छूट जथे। आंखी नइ मिले ले कतकोन मनखेमन के जिनगी म कुलुप अंधियार हे।
एक डहर तो हमर परदेस के सरकारी अस्पताल के हालत ककरो ले नइ छिपे हे। इहां बुखार, सरदी-खांसी जइसे नान-नान बीमारी के घलो न बने इलाज होवय, न दवई मिलय। दूसर डहर लोगनमन म लहू देवई ल लेके आजो कतकोन परकार के भरम, संका-कुसंका फइले हावय। इही हालत देह अउ आंखी दान करई ल लेके घलो हे। समाज म सिक्छा बाढग़े, लोगनमन सिक्छित होगे, टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर के जमाना आ गे। मनखे ह दूसर गरह म पहुंच गे। तभो ले अंधबिसवास अउ सामाजिक कुरीति ह नइ कमतियावत हे।
अइसन म लहू, आंखी, चमड़ी अउ देह दान करे बर लोगनमन ल जागरूक करइ ह बहुचेत जरूरी हे। लोगनमन ल चमड़ी, देह, लहू अउ आंखी दान करे चाही। काबर के इलाज, दवई अउ जरूरी सुविधा-साधन नइ रहे ले कोनो मरीज के मरई ह हतिया करई के बरोबर हे।
जिनगी ह छनभंगुर हे। घड़ी-दू-घड़ी के जिनगानी हे, त फेर काबर डरराय बर चाही। कोनो ल आंखी देदव, कोनो ल लहू, चमड़ी, गुरदा देदव। कुछू ल तो दान करव, काहीं तो निसानी छोड़व, तभेच दुनिया ले जावव। काबर के ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।Ó दूसर के हित, भलई करे ले कोनो बड़का धरम नइये, अउ दूसर ल दु:ख-पीरा पहुंचाय जइसे कोनो पाप नइये।
जरूरत ए बात के हावय के समाज म फइले अंधबिसवास अउ भरम ल हर हाल म खत्म करे जाए। अंधबिसवास अउ भरम बगरइयामन ल रोके जाए। समाज ले निकाले जाए। जेल म डारे जाए। मनखे के जिनगानी बचई सबले जरूरी होय बर चाही। लहू नइ मिले के सेती कोनो मनखे के मउत नइ होय बर चाही। सबो मनखे के आंखी म रोसनी होय बर चाही। फेर, समाज म जागरुकता के बहुचेत कमी हे। जादा लोगनमन आगू नइ आवत हें, त अउ का-कहिबे।

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