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पानी से फायदा, पानी से नुकसान !

locationरायपुरPublished: Jul 02, 2018 10:02:24 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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पानी से फायदा, पानी से नुकसान !

सिरतोन! पानी गिरे (बरसात) के अगोरा तो सबे ल रहिथे। फेर, आजकल ऐकर न कोनो बेला-बिचार हे, न कोनो दिन-बादर। पानी गिरे ले अब्बड़ नुकसान घलो होय बर धर ले हे। तेकर सेती ‘नवा सबकÓ ये हावय के ‘पानी गिरे ले हरदफे सबके भला नइ होवय।Ó
सिरतोन! बात तो तेहा सोला आना कहत हस। देखे हव ह केदारनाथ म जादा पानी गिरे ले जान-माल के कतेक नुकसान होय रहिस हे। बिहार, कस्मीर, केरल, मध्यपरदेस जइसे कतकोन राज म बाढ़ ह तबाही मचाय रहिस हे। फायदा का होइस जादा पानी गिरे के। अजी! पानी अतके गिरय के सबो के भलई हो।
सिरतोन! देस के कतकोन जगा म बइसाख-जेठ म हर बछर पानी खातिर त्राहि-त्राहि मच जथे। एक-एक बाल्टी बर भटकत रहिथें। रतजगा करथें। आधा दिन तो पानी भरई म पहा जथे। पानी ल लेके मारापाटी, खून-खराबा घलो हो जथे। पानी के महत्तम ल उहीमन जानथें, जेमन पानी गिरय कहिके पूजा-पाठ अउ किसम-किसम के टोटका करथें। बादर डहर ल देख-देख के पानी बरसाय बर भगवान से बिनती बिनोथे।
सिरतोन! सियानमन कहिथें के पहिली तीन-चार दिन तक झड़ी लगई ह सहज बात रहय। अब तो घंटा-दू घंटाभर पानी बरस गे त बहुत हे। अतकेच म लोगनमन समझथें के बाढ़ आ जही, तबाही मचा देही। अब तो झड़ी लगई ह सपना होगे हे।
सिरतोन! पानी के बातेच ह अलगेच हे। भुइंया के तरी के पानी ह पताल म जावत हे। बने पानी बरसही तभो तो पानी ऊपर डहर आही। कुआं म पानी रइही। बोर म पानी निकलही। पानी ह कतकोन पइत जम के बरसथे। फेर वोहा बोहा जथे। कोनो जगा नइ रुकय। नरवा ले नदिया अउ नदिया ले समुंदर म सहा जथे। भुइंया, तरिया, खेत-खार सुक्खा के सुक्खा।
सिरतोन! बूंद-बूंद पानी ल सकेले, बचाय ले जिनगी बाचही। गांव के एक कुआं- बोर म पानी निकलथे त गांवभर के मनखे जुरिया जथें। वोइसने सहर के मोहल्ला म कोनो नल चलथे त लोगनमन पानी-पानी चिल्लावत दउड़ परथें। नल ह कतेक बेर चलथे अउ वोमा कतेक पानी निकलथे, तेन ल सबो जानथें। जेन जतके जोर लगाथे, वोला वोतके पानी मिलथे। पर भरोसा पानी मिल जही, अइसन सोचव झन।
सिरतोन! पानी नइये त मुसीबत, पानी जादा गिरथे त मुसीबत। एक कोती बरसात ह कतकोन मुसीबत ल दूरिहा देथे। परयावरन, खेती-किसानी, रूख-राई, जीव-जंतु ल नवा जिनगी देथे। बरसात ह भुइंया ल नउहा के गंदगी ल समंदर म डार देथे। दूसर कोती हर चउमास म मुसीबत के बरसात घलो होथे। गाज गिरे ले कतकोन मवेसी-लोगन मर जथे। घर-दुवार भसक जथे। गंदगी, बदबू, गंदा पानी से उल्टी-दस्त अउ भुंसड़ी काटे ले मलेरिया के बीमारी फइल जथे। ‘पानी रे पानी तोर रंग कइसन?Ó अइसन कहत दूनों संगवारी पसीना पोछत अपन-अपन घर डहर रेंगते बनिंन।
जब मनखे ह परकरीति ल रिस देवावत हे, परयावरन के बिनास करत हें, जंगलमन ल उजार हें, बरसात के पानी ल सकेल के नइ रकत हें। सरकार ह नदियामन ल नइ जोरत हे, त अउ का-कहिबे।
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