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गऊ माता के होगे हे ‘मरे बिहान!

locationरायपुरPublished: Aug 28, 2018 05:27:36 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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गऊ माता के होगे हे ‘मरे बिहान!

राजू ह जोर-जोर से पढ़त रहय। गाय हमर महतारी ए। ऐहा पालतू जानवर ए। ऐहा हमन ल दूध देथे। ऐहा दुनिया के कतकोन जगा मिलथे। हमर देस म गाय ल लछमी दाई मान के सम्मान देथें, पूजा करथें। गाय ल सबो जानवर म पबरित माने जाथे। ऐला सुनके बबा पूछिस- का पढ़त हस, बेटा? राजू बोलिस- गुरुजी ह गाय के रचना याद करके आय बर कहे हे।
बबा कहिस- बने पढ़ बेटा। फेर, जउन पढ़त हस वोला जिनगी भर सुरता घलो राखबे। गाय ल महतारी कहिबे त वोकर देखभाल, सेवा-जतन घलो करबे। देखत-सुनत हस ना, आजकाल देसभर म गऊ माता के का हाल होवत हे। वोला लेके कइसे ‘राजनीतिÓ चलत हे। गोसालामन म न चारा-पानी देवंय, न दवई। कतकोन गायमन भूख, पियास अउ बीमारी, कुपोसन के सेती मर गें। लालची अउ सुवारथी मनखेमन गोसेवा के नांव म सरकार से लाखों रुपिया अनुदान लेके डकार लेवत हें।
राजू बोलिस – जब हमन गाय के पूजा करथंन, त फेर हमर देस म वोकर हतिया काबर होथे? वोला वोकर हाल म काबर छोड़ देथें? भूख-पियास रख के गऊ माता ल काबर तड़पावत हें? गऊ उपर होवत अतियारचार अउ वोकर हतिया ल चुमचुम ले बंद काबर नइ करंय, बबा!
बबा कहिस- सुवारथ के जमाना म धरम म राजनीति अउ राजनीति म धरम खुसर गे हे, तेकर सेती ए सब होवत हे। सबे अपन सुवारथ म बूड़े हें। सबला सिरिफ अपनेच फिकर हे। वोट, कुरसी अउ पइसा के लोभ म फंसे मनखेमन ल गऊ माता के दुरदसा नइ दिखत हे। सब अपन फाइदा के सोचथें अउ बोलथें।
बबा के गोठ ल सुनके राजू के ददा कहिस- बाबूजी! दरअसल म, गाय के पूजा करई ह वोकर उपेक्छा करे बरोबर आय। हमर देस म जेकर उपेक्छा करे बर होथे त हमन वोकर पूजा करे बर सुरू कर देथन। गाय ल महतारी मानथंन, फेर उपेक्छा करके वोला कंकाल बना देथन।
सिरतोन कहेस बेटा! गऊ माता के हाल-बेहाल हे। बेमउत मारे जावत हे। जेती देखबे, वोती किंजरत रहिथें। सड़क म बइठे रहिथें। सहर म चारा नइ मिलय त झिल्ली-पन्नी ल खाके मर जथे। मोटरगाड़ी म रेता जथें। गांवमन म घलो चरागन नइ बांचत हे। लोगनमन गाय-गरुवा ल पाले-पोसे नइ सकत हें। खुल्ला छोड़ देथें या फेर बेच देथें। दूनों सूरत म गऊ माता के करलई हे। गोसाला म तो अउ जादा मरे बिहान हे। भूखन-पियासन कतकोन दिन ले परे गऊ माता ह तड़प-तड़प के जान गंवात हे। सौ बात के एक बात, एक कोती गऊ ल बचाय बर मनखे के जिनगी ल संकट म डारत हें। दूसर कोती गोसेवा-गोरक्छा के नांव म गऊ ल बेमौत मारत हें? आखिर ऐकर जिम्मेदार कोन हे?
आज ‘बाप बड़का न भइया, सबले बड़का रुपइयाÓ के जमाना हे। सुवारथी दुनिया म जब लोगनमन अपन सगा दाई-ददा के सेवा-जतन नइ करत हें। घर ले निकाल देवत हें। अइसन म गऊ माता के निसुवारथ देखभाल करे के कोनो उम्मीद नइ दिखत हे, त अउ का-कहिबे।
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