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पइसा अउ पहुंच वालेमन के जमाना हे!

locationरायपुरPublished: Sep 10, 2018 10:49:25 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे

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पइसा अउ पहुंच वालेमन के जमाना हे!

सु नावव!का चलत हे? भइगे, उहीच गोठ-बात तो आय। आजकाल जउन चलत हे। घर-परिवार, समाज अउ सरकार म जउन होवत हे। सबो डहर ‘जेकर लउठी, वोकर भइंसÓ हे। मनमरजी अउ मनमानी के नवा जमाना हे। पइसा ह सब कुछ होगे हे। पइसा आय बर चाही, भले कुछु करे बर परय। पइसा वालेमन के रुतबा हे, समाज म मान-सम्मान हे।
कोनो ल काहीं पूछबे तहां बस इहीच रोना हे। दुनियाभर के चिंता ल मुंड म लेके किंजरत हें। आन के गुस्सा ल आन ऊपर उतारत हें। वइसे नवा अउ जुन्ना पीढ़ी के सोच म फरक होथे। जमाना बदलत रहिथे। जमाना के संग म समाज के रीत-रिवाज बदलथे। लोगन के अचार-बिचार, आदत-बेवहार बदलथे। फेर, कोनो नइ बदल घलो। असल बात का हे तेन ल बतावव ना?
का बतावन! जेती देखबे तेती अधरम, अनियाय, अतिचार, अपराध होवत दिखथे। रीत-रिवाज, मान-मरजादा के धज्जी उड़ावत सुनई देथे। सत ऊपर असत ह भारी परत दिखथे। घोर कलजुग आ गे हे। समाज ह तो खेल-तमासा बन गे हे। दिल अउ समाज के एके हाल हे। दूनों ह खिलौना बन गे हे। खिलौना ह खेलत-खेलत गिर के टूट जथे। वोइसने दिल ह टूट जथे।’दिल का खिलौना हाय टूट गया, कौन लुटेरा आ के लूट गया।Ó
दिल अउ समाज ह तो एक-दूसर के दुसमन हे। समाज ह कभु दिल के बात ल नइ मानंय। वोहा अपन बंधे-बंधाय, पुरखा ले चले आवत रीत-रिवाज, परंपरा, नियम-धियम म चलथे। समाज ले बड़का चाटुकार घलो कोनो दूसर नइये। आपमन कभु समाज ल गरीब, कमजोरमन के संग धरत देथे हव? हमन तो नइ देखे हन। समाज के खिलाफ गिस तहां ले गरीब के तो बारा बजा देथें। पौनी-पसारी बंद कर देथे। समाज ले बाहिर कर देथें। फेर, जेकर तीर पइसा होथे, धन-दउलत, चीज-बस होथे, ताकत होथे समाज वोकर चिलम भरथे, गुन गाथे, हुकुम बजाथे।
फेर, कतकोन अइसे मनखे घलो हे जउनमन समाज के परवाह नइ करंय अउ वोला ठेंगा दिखाथें। पता हे, बेचारा मनखे ह कुछु नवा करे म काबर हिचकथे? काबर के वोकर मन म एकठिन डर बइठे रहिथे के, समाज का कइही। समाज ल दूसर के मामला म पड़े म मजा आथे। वइसे वो गाना ल तो सुनेच होहू, जेमा समाज के चेहरा के मुखौटा ल नोंचे हावय – ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। छोड़ो बेकार की बातों में, कहीं बीत ना जाए रैना।Ó
गौंटिया सोमनाथ के बेटी ह नेता रोमनाथ के बेटा के संग परेम करथे। दूनों कमाथें। फेर, सोमनाथ ऐकर सेती डररावत रहिथे के, दूसर जात के छोकरा ए, त समाज ह का कइही। एक दिन सोमनाथ के बेटी ह कोरट म बिहाव करके मांग म सेंदूर भर के आ गे। ‘मियां-बीबी राजी, त का करही काजी।Ó जेन समाज ह बिहाव के पहिली बिलबलावत रहिस वोहा बिहाव के बाद कुछु कहिस नइ। समाज के बइठका म सब सुलट गे। समझौता होगे। तोरो जै-जै, हमरो जै-जै। पहुंच वालेमन समाज ल खिलौना बना ले हें।
जब समाज म सिरिफ पइसा अउ पहुंच वालेमन के पूछपरख हे। गरीब, ईमानदार अउ सिधवा मनखेमन के पूछइया नइये, त अउ का-कहिबे।
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