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डररा-डररा के जिये के समे !

locationरायपुरPublished: Sep 17, 2018 06:54:25 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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डररा-डररा के जिये के समे !

मितान! चल, आज सवाल-सवाल खेलबो। एक सवाल मेहा करहूं अउ एक सवाल तेहा करबे। फेर, हर सवाल के जवाब सोच-समझे के देय बर परही।
मितान! अब तेहा मोला भले डरपोकना का या कुछु अउ का। फेर, सच बात तो इही हे के कुछु बोले, कोनो बात के जवाब दे म डर लागथे। संविधान कहिथे के- लोकतंत्र म सबो मनखे ल अपन बात कहे के हक हे। चाहे वो बात ले कोनो सहमत होवय या झन होवय। फेर, आज के माहौल म कहुं मुंह खोल देबे त लोगनमन लउठी-डंडा लेके मारे-पीटे बर धर लिहीं। हमर करा पूछे बर कतकोन सवाल हे अउ कतकोन सवाल के सोना आना सच जवाब घलो हे।
मितान! आज सबले बड़का सवाल इही हावय के कानून के राज म लोगनमन खुल्लेआम कानून काबर तोड़त हें?
मितान! गरुवा चोरहा ए कहिके लोगनमन ल पीट-पीट के मारे के घटना ल देखे-सुने के बाद डर लागथे के, कहुं रद्दा म बइठे गरुवा ल खेदारत, खेत म फसल चरत गरुवा ह हकालत देख के भीड़ ह पीछू झन पर जाय! घर म आए सगा बर बोकरा-कुकरा लेगत बेरा कोनो गरुवा के मांस धरे हे कहिके फोकटहे-फोकट चिल्ला झन देवय। डर तो टोपी पहिने, पगड़ी बांधे, दाड़ी बढ़ाय म घलो लागथे।
मितान! एक सवाल तो एहू हावय के आज मतभेद ह मनभेद काबर बनत हे। लोगन ल एक-दूसर के दुस्मन कोन बनावत हे? परोसी ह परोसी उप्पर बिसवास काबर नइ करत हें? नान-नान बात म लोगनमन एक-दूसर ल मारे-काटे बर उतारू काबर होवत हें?
मितान! कोनो जिनिस ल लेके दू मनखे के अलग-अलग बिचार हो सकथे। त दूनोंझन बात के बतंगड़ नइ बना के चुप हो जांय त बात ह नइ बिगड़। लड़ई-झगरा, मनमुटाव के नौबत नइ आय। तोरो बात सही- मोरो बात सही, तहुं जीते-महुं जीतेंव, के भावना ह कतकोन बिगड़त बात ल बना देथे।
मितान! बड़ेक जनिक सवाल ए हावय के सरकारमन ल जउन काम, बेवस्था करे बर चाही, अपन जिम्मेदारी निभाय बर चाही, वोकर बर अदालत ल सुरता देवाय अउ फटकारे के नौबत काबर परत हे?
मितान! भीड़ के आतंक, मानमानी, हिंसा, तोडफ़ोड़, दंगा-फसाद, खून-खराबा के बाढ़त घटनामन ल सरकारमन रोक नइ पावत हें। कानून के राज चलाय के जिम्मेदारी ल घलो नइ निभा पावत हें। मनखे के भीड़ ह सरेआम कोनो मनखे ल पीट-पीट के मार डरथें, फेर पुलिस अउ दूसर सुरक्छा एजेंसीमन के लोगनमन दरसक बरोबर देखत रहिथें। वोला कोनो भी सभ्य समाज हबरदास्त नइ कर सकय।
मितान! हमन अपन देस -समाज ल कइसे समझन?। जिहां बिना मतलब के, बिना कारन के, कोनो ल पीट देवत हें। ककरो घर म हमला कर देवत हें। का सरकार ह भइरा-कोंदा, अंधरा होगे हे? अगर देस-समाज ह अइसनेच चले बर हे त फेर, कोनो सरकार के जरूरतेच काबर हे?
जब देस-समाज म इरसा, लालच, कपट, दुस्मनी, भेदभाव, मतभेद-मनभेद, नफरत पलपलावत हे। लोगनमन के सधारन जिनगी जियई ह घलो महाभारत बरोबर होगे हे, त अउ का-कहिबे।

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