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बाबागिरी के मजा, बेरोजगारी के सजा

locationरायपुरPublished: Sep 25, 2018 06:24:12 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे.

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बाबागिरी के मजा, बेरोजगारी के सजा

मितान ! नेतीगिरी, दादागिरी अउ चमचागिरी सुनत रहेन। फेर, अब तो ये ‘बाबागिरीÓ घलो उतर गे हे। लोगन ल ठग-जग के, ***** बना के, सुग्घर सपना देखा के धन-दउलत, फाइदा, नांव कमावत हें अउ अब्बड़ मजा घलो उड़ावत हें।
सिरतोन ! जब ले ‘सिव सरकारÓ ह बाबामन ल राज्यमंतरी के दरजा देके सुख-सम्मान देवत हे, तब लेे कतकोन मनखे के लार ‘बाबागिरीÓ बर टपकत हे। रात-दिन अपन किस्मत ल कोसत हें। अरे अभागा! मूरुख! अरे बेअकल! कमबुद्धि! का जरूरत रहिस अतेक पढ़े-लिखे के। का जरूरत रहिस जांगर तोड़े के। का जरूरत रहिस अतेक मिहनत करे के। का जरूरत रहिस दू-चार पइसा कमाय खातिर आठ-दस घंटा नौकरी-चाकरी करे के।
मितान ! तेहा थोरेचकिन अकल लगाते अउ बाबा के चोला धर लेतेच त आज कहुं न कहुं के मंतरी, सांसद, बिधायक होचेत। ऐमा के कुछु नइ होतेच त अपन करम ल फूटहा झन समझ! राज्यमंतरी के दरजा मिले ‘फोन बाबाÓ तो होइच के रहितेच!
सिरतोन ! कतकोन मनखेमन अपनआप ल हजार पइत कोसत रहिथें- अरे, वो गदहाबुद्धि ! तेहा का नैतिकता, सद्चरित्र, ईमानदारी, सत-ईमान के रद्दा म चले के पाठ पढ़ लेच, तेहा तो सत्यवादी हरिसचंद बन गे। साधु-संत, महात्मामन के राजधानी म जाके सत्ताधारीमन के चापलूसी करे के का मतलब हे। सत्तासुख-सम्मान के का जरूरत हे। फेर, तेहा ये कइसे भुला गेच के ऐहा कलिजुग हे।
मितान ! तेहा भुला गे हस के, आजकाल राजनीति म परसाद बिद्वान मनखे या सज्जन बाबा बने ले नइ मिलय। पहिली त अपन एक ‘बाबा सेनाÓ बनाव। फेर, सरकार चलइयामन के खिलाफ कभु भरस्टाचार, कभु रंग-रंग के आरोप लगाव। दू-चार पइत सरकार ऊपर खिसियाव। वोहा डररा के पाका आमा कस तुंहर झोला म नइ आ गिरही, त हमर नांव बदल दव। जउन मांगहू, तउन मिलही। जइसे नचाहू, वइसे नाचही।
सिरतोन ! कोन से पइसा वोकर ददा के खिंसा ले जावत हे। ‘भगवान के चिरई, भगवान के खेत, चरव रे बाबा हो, भर-भर पेट।Ó मोटावव अउ जिनगी के सुख पावव। सहिच म अइसन गियान हमूमन ल जवानी म मिल जतिस त आज हमूमन सरकारी गाड़ी म किंजरइया ‘फोन बाबाÓ होतेन। अब मुंड़ धर के रोवत हंन। हमरमन के जिनगी तो आधार ल बइंक खाता, मोबाइल, पेन कारड, रासन कारड म जोड़वाय के चक्कर लगायेच म ही बीतही!
मितान ! ‘जरे म नून रगड़ेÓ बरोबर एकझन नेता ह सलाह दे हावय के पढ़े-लिखे जवान लइकामन ल नउकरी-चाकरी नइ मिलत हे त वोमन ल ‘पान ठेलाÓ खोल लेय बर चाही। पांच बछर म पांच लाख रुपिया सकेल लेहू। ऐकर पहिली एकझन नेता ह ‘भजियाÓ बनावव कहे रहिस। हमर छत्तीसगढ़ म तो जेन लइकामन पढय़-लिखय नइ, वोमन ल ताना मारे खातिर कहे जाथे- ‘नइ पढ़बे-लिखबे त का भजिया बेचबे- पान ठेला चलाबे!Ó
जब ‘मोह-मायाÓ ल छोड़व कहइयामन खुदे ‘मोह-मायाÓ म बूड़त हें। नउकरी-रोजगार देय बर छोड़के नेतामन (सरकार) पढ़े-लिखे बेरोजगार लइकामन के हंसी उड़ावत हें, त अउ का-कहिबे।
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