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ठलहामन के गोठ, न ओर न छोर!

locationरायपुरPublished: Oct 04, 2018 06:28:50 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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ठलहामन के गोठ, न ओर न छोर!

पता हे ठलहामन के सबके बड़का काम का होथे?
ठलहा अउ काम! ये कइसे हो सकत हे? अजी! काम करही त ठलहा कइसे रइही। अउ, ठलहा रइही त भला काम काबर करही।
ठलहामन के अब्बड़ काम होथे अउ उहू ह बड़का-बड़का। गप मरर्ई – डिंग हंकई। लोगनमन के निंदा-चारी करई। बात के बतंगड़ बनई। लिगरी लगई। हांसव झन गा। ठीक हे, आपमन अइसन नइ अव। अइसन कुछु काम नइ करव। फेर, घर-परिवार, गांव-समाज म अइसन कतकोन ठलहा मनखे मिल जहीं जउनमन एक ले सेक बतावत रहिथें, रंग-रंग के गोठियावत रहिथें। अइसे-अइसे बात बताथें जइसे दुनियाभर के जानबा उहीचमन ले हे। का आपमन के कभु अइसन ठलहा मनखेमन ले पाला परे हे? नइ परे हे, हमर तो परे हे, जी!
हमर देस म हर गली अउ चउक-चौराहा म ठलहा मनखे दिख जथें। जेन सहर म हमर नानपन बीते हे उहां कतकोन ठलहा मनखे रहिन जउनमन बात-बात म सरत लगा लेवंय। जइसे के, बेमौसम के पानी गिरे बर धर लय त सरत लग जावय के गली म बोहावत पानी ह कहां तक जाही। ऐती पानी बोहातिस, वोती पंदरा-बीस मनखे के पाछू-पाछू रेंगे के सुरू। अउ न बादर, न पानी त ये बात म सरत ल जाय के रद्दा म रेंगत छेरी ह रूख के पाना ल चरही, के नइ चरही।
सिरतोन! एकझन गपेड़ू ह काहय के हमर बबा के बबा जमाना म दूध के नदिया बोहावय। नदिया के नांव पूछते तहां ले मुंह ल फार दय।
अजी! बात ठलहा मनखेमन के होवत रहिस। चाय ठेला म चारझन ठलहा संगवारी बइठे रहिन। फटफटी म छोकरा-छोकरी ल जावत देख के एकझन कहे लगिस। फलाना के छोकरी कस लागिस हे। फेर, वो छोकरा ह तो हमर गांव के नोहय। वोकर दाई-ददा के करम फूटगे। समाज बिगड़ हे। बइठका कराय बर लागही। दांड़ देय, हुक्का-पानी बंद कराय, नइते परवार समेत गांव ले निकाले बर परही। बिना सोचे-बिचारे ठलहा मनखे गांव-समाज के इज्जत के चिंता-फिकर म बूड़ गे।
अजी! आजकाल के ठलहामन ल किरकेट के जर धर लेथे। फलाना बल्लेबाज कतेक रन बनाही। फलाना देस जीतही, ढेकाना देस हारही। ठहलामन अनुमान लगावत रहिथें। कतकोन ठलहामन ‘गपÓ मारत-मारत ‘सरतÓ लगाय बर धर लेथें। त कतकोन ठलहामन तो ‘सरतÓ लगात-लगात ‘सट्टाÓ लगाय बर धर लेथें।
सिरतोन! सट्टा लगाय बर न पढ़े-लिखे मनखे लागय, न अनपढ़। सबो अपन हिसाब से गुनत रहिथें। आकब लगावत रहिथें। नाहकिस तेन मोटर के नंबर का रहिस? जनम तारीख का ए? के बजे उठेंव। के पइत कुकुर भुकिस। के पइत बाई ह हुंत कराइस। के पइत दाई ह गारी दिस…।
ठहला रहई ह समे के बरबादी ए। बीते समे ह नइ लहुटय। तभो ले लोगनमन समे के अइसे बरबादी करथें, जइसे वोमन अमर होय के आय हें, त अउ का-कहिबे।
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