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‘दिवालिया होवई ल समझथें सान!

locationरायपुरPublished: Nov 05, 2018 07:44:38 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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‘दिवालिया होवई ल समझथें सान!

कुंवार बीत गे। कातिक आ गे। नवरात चलदीस। दसहरा मना गे। अब आ गे देवारी। धनतेरस, चउदस, सुरहोती से लेके पुन्नी तक उछाह, मंगल, खुसी छाय रइही। कतकोन गांव-सहर म तो जुआरीमन के मजा हो जथे। वोमन मानके चलथें के देवारी तिहार म जुआ नइ खेलबोन त नरक म जाबोन। पुलिसमन के जुआ पकड़ई ल घलो वोमन गलत मानथें। वोकरमन के इही कहिना हे के- जब महाभारतकाल म धरमराज युधिस्ठिर ह जुआ खेल सकत हे त फेर हमन कोन ‘खेत के मुरई अन।Ó
जुआ खेलई ल देवारी तिहार ले कोन जोड़े हे, तेन ल तो खेलइयामन जानंय। फेर संत, महात्मा, रिसि-मुनि, बिद्वानमन तो इही बताय हें के देवारी ह अधरम ऊपर धरम, अनियाय ऊपर नियाय, बुराई ऊपर अच्छाई, असत् ऊपर सत् के जीत के तिहार ए। एकठिन दीया बार के अंधियारी ल भगा के अंजोर बगराय के सिखोवन देवइया तिहार ए। उछाह, उमंग, भाईचारा, परेम-बेवहार, एकता, सद्भावना, समानता बढ़ाय के तिहार ए।
ए बात ह अकदेमच सहीच आय के आजकाल सब उल्टा-पुल्टा होय बर धर लेय हे। न सबो डहर अंजोर बरग हे, न बुराई मिटावत हे। अब देखत तो हावन ना! कइसे देखावा, फिजूलखरचा, जुआ अउ नसाखोरी के सेती देवारी ह अंजोरी के तिहार नइ होय के, कतकोन परिवार के जिनगी म सदा दिन बर कुलुप अंधियारी रात बन जथे। लड़ई-झगरा के सेती भाईबंध, परिवार, अरोसी-परोसी ले सबे दिन बर संबंध टूट जथे। समाजमन म दुस्सनी तको हो जथे।
दिवालिया होवई ह तको देवारी तिहार के पहिचान बनत हे। दिवालिया होवव! ए भइया, कोनो ल दिवालिया हो, अइसे नइ कहे जाय। फेर आपमन के तीर-तखार, आस-परोस म अइसन मनखेमन के कमी नइये, जउनमन देवारी म दिवालिया होय म बिसवास रखथें!
आजकाल कतकोन मनखेमन बर देवारी तिहार मनई याने ‘दारू पियई, कुकरा-बोकरा खवई, दू-चार झन ल रे-बे कहई, झगरा-लड़ई, मरई-पिटई अउ कोनो गली-खोर म बेसुध होके परे रहई।Ó देवारी तिहार म एक-दूसर संग खुसी बंटई, दुख हरई, पांव-पयलगी करई ह नदावत हे। अजी! खुसी ह बांटे ले बाढ़थे अउ दुख ल बांटे ले कमतियाथे।
देवारी तिहार के ऐहा सबले दु:ख के बात आय के समाज अउ परवार ह अपन ‘अधारÓ ल छोड़त हें। सबोझन जुर-मिल के परेम-बेवहार ले तीज-तिहार मनाय के परंपरा ल भुलावत हें। आजकाल तो देवारी तिहार म लड़ई-झगराझन होवय कहिके गांव-गंवई के लोगनमन भगवान के बिनती तको बिनोवत रहिथें। तभो ले उमंग, उछाह, भाईचारा के देवारी तिहार ल जुआ, नसा, देखावा अउ फिजूलखरची के बाढ़त परभाव ले बचाय के चिन्ता-फिकर नइये।
देवारी के दीया ह जम्मो अंधियार ल दूरिहा के जइसे अंजोर बगराथे, वोइसने मनखेमन ल घलो अपन मन, आत्मा के अंधियार ल उजियारे बर चाही। फेर, आजकाल पइसा, पद, ताकत वालेमन के सम्मान-गुनगान होवत हे। चाहे वोमन अधरमी-कुकरमी राहय, चाहे सराबी-जुआरी। जमाना उल्टा चलत हे, त अउ का-कहिबे।

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