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अब तो किसम-किसम के सुनामी आवत हे!

locationरायपुरPublished: Dec 05, 2018 08:23:00 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे

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अब तो किसम-किसम के सुनामी आवत हे!

सु नामी आथे त सब तहस-नहस हो जथे। वइसे सुनामी समुंदरभर म नइ आवय। घर, परिवार अउ समाज म तको अचानक सुनामी आथे। रिस्ता-नता, मान-सम्मान सब बरबाद हो जथे। बीते समे के, गुजरे जमाना के सब बात आगू आ जथे। जुन्ना भेद खुल जथे। जम्मो बुरा करम पानी म तेल कस उफला जथे। ‘माफी दव-माफी दवÓ के आवाज सुनई देय बर धर लेथे। छनभर म कतकोन मनखे के चक उज्जर थोथना कोइला कस करिया हो जथे।
एकझन हीरोइन के मुंह खोले ले बालीवुड म सुनामी के लहरा उठ गे हे। एक-एक करके कतकोन हीरोइन, कलाकार, गायिकामन अपन मुंह खोलत हें। ऐकर से कतकोन हीरो-कलाकारमन के बोलती बंद होगे, त कतकोनझन ह मुंह लुकावत फिरत हें। भारतीय समाज म चाहे बेटा कुछु भी कर ले, फेर वोकर अवगुन ल छुपाय जाथे। वोकर गलत काम ल मरदानगी तको कहे जाथे। फेर, बेटी ह आंखी उठाके ककरो से थोकिन बातभर कर ल त माने जाथे के वोहा खानदान के नाक कटवावत हे।
घर-परिवार, समाज म बेटीमन ल बात-बात म समझावत रहिथें। गियान देवत रहिथें। ए कर-वो कर, ए झन कर-वो झनकर, अइसे कर – वोइसे कर, अइसे करबे- वइसे करबे। पबरित बन। अपन खानदान बर परान दे देबे। तोर हाथ म दू परिवार के लाज हे। बेटी तेहा गाय अस, जेला जेन खूंटा म बांधव, बंधाय रहे बर हे। बेटी तेहा गंगा अस। जेमा दुनियाभर के गंदगी डाल दे जाय, तभो ले चुपचाप बोहाय बर हे। याने के बेटीमन कोनो इंसान नोहय, रद्दा के पथरा ए, जेला जब चाहव तब लतियावत रहव!
दस बछर बाद म एकझन सताय माइलोगिन ह बढ़ बल करके बोलत हे अउ दूसर माइलोगिन ह कहत हावय के गलत बात ल आगू लवइया माइलोगन ह अपन ‘नांव कमायÓ खातिर अइसन कहत हे। ऐमा कोनो सक-सुबा नइये के भारतीय समाज म मरदजात भर मन नइ, बल्कि माइलोगिनमन घलो माइलोगिन के दुस्मन होथें। तभे तो सास-बहू के मनमाने किस्सा-कहिनी हमर संस्कारी समाज म होथे।
घर-परिवार म सुमानी ‘वोÓ के सेती घलो अब्बड़ आथे। ‘वोÓ ह बड़ खतरनाक चीज ए। जब कभु घरवाली अउ घरवाला के बीच म ‘वोÓ आथे तब घर-परिवार के बिगड़ई खच्चित हे। सुवाल हे के ए ‘वोÓ का ए? ‘वोÓ के मतलब तो जुन्ना कथा, कहिनी-किस्सा अउ नवा जमाना के चाल-चलन- चरितर, गोठ-बात ल देख-सुन के समझे जा सकत हे। ए ‘वोÓ के सेती गौतम रिसि ह अपन घरवाली अहिल्या ल पथरा बना दे रिहिस।
अब सुवाल ए हे के ‘वोÓ होथे कोन? ‘वोÓ मरद घलो हो सकथे अउ माइलोगिन घलो। मरद जब ‘वोÓ बन जथे त खूनखराबा हो जथे। माइलोगिन जब ‘वोÓ बन जथे त घर-परिवार टूट जथे।
कुल मिला के आगू म जउन जइसे दिखथे, रहिथे, बोलथे, वोहा वइसनेच हे अइसन नइ कहे जा सकय। जमाना बदल गे फेर, मनखे के करम नइ बदल हे। ‘कुकुर के टेडग़ा पूछी ह कभु सीधा नइ होवयÓ हाना ह सबो जगा सच होवत दिखई देथे, त अउ का-कहिबे।
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