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नदावत खेती, कमतियावत किसान

locationरायपुरPublished: Dec 12, 2018 06:58:41 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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नदावत खेती, कमतियावत किसान

क इठिन बढिय़ा-बढिय़ा छत्तीसगढ़ी गीत हावय। जइसे- ‘मोर छत्तीसगढ़ के कोरा भइया धान के कटोरा।Ó ए गीत ले जुरे सरी गोठ ह अवइया समे म कहिनी, किस्सा, इतिहास बन के भारतीय पुरातत्व बिभाग म जमा हो जही। काबर के ऐमा छत्तीसगढ़ के अइसन दुरलभ जिनिस के जानकारी देय हावय जउन ह बहुतेच जल्दी नदा जही। ए जिनिस हे ‘धान के कटोराÓ, कहेव त ‘खेती-किसानीÓ।
सरकार ह जइसन खेत-खार ल उत्ता-धुररा कब्जा करत हे, फेक्टरीवालामन ल बेचत हे, ऐला देख के तो अइसे लगथे के आजकाल चारोंमुंडा दिखत खेत-खार ल कालीजुवर देखे बर घलो नइ मिलही। त जब तक खेत-खार हावय तब तक बने नजरभर के देख लव ऐला। नइते कालीजुवर इही खेत-खार ल देखे बर तरस जहू। खेती-किसानी ह सपना हो जही। खेत-खार तो दिखहू, फेर कोनो म धान-पान उपजे नइ पाहू। फसल ले लहलहावत खेत-खार देखे बर दूसर परदेस जाय बर परही।
कुछ बछर म किसान-बनिहारमन ठलहा हो जहीं। तब वोमन का काम-बुता करहीं? कइसे काम-बुता मांगहीं? ए तो नइ कहि सकंय के साहब किसान-बनिहार आंव। कतकोन दिन ले ठलहा हंव। खेत जोते, धान नीदे के बुता देदव। वो सकथे वोमन कइहीं कि साहब, मेहा किसान रहेंव, मोर तीर पांच-दस एक्कड़ खेत-खार रहिस। नानपन ले खेती-किसानी के बुता करत रहेंव। कुछु बुता बतादव। अउ, का पता के बेचारा ह काम-बुता मांगेच नइ सकही। खेत-खार ल बेच के किसानमन बुता मांगहीं, रोजी-मजूरी करहीं त वोकर का इज्जत रहि जही! हां, जब वोहा किसान रिहिस, तब अउ बात रिहिस।
हो सकत हावय कि कालीजुवर अपनेच खेत-खार म लगे फेक्टरी म बुता मिलगे त उहां के साहब ह अंगरी देखाय के कइही- वो किसान छोड़ ए काम ल, तोर बस के नोहय। ए खेत म धान, गहूं नइ उपज। लोहा, स्टील, सीमेंट उपजथे! अउ का होही जब दू-चार महीना काम करे के बाद म फेक्टरीवालामन कइही कि तोर लइक बुता सिरा गे, हमन ल खेती-किसानी कस ऐक्केच काम न करे बर हे, न करवाय बर हे। खेत के दाम चुका दे हन, अब तुमन जानव।
संगी हो! फेक्टरी खड़ा होथे, तहां ले फेक्टरीवालामन अइसनेच अटियाथें। गांव के किसान-बनिहारमन ल ‘दूध ले मांछी कसÓ निकाल देथें।
खेत-खार सिरा जही त फेर गीत के बोल घलो बदल जही। छत्तीसगढ़ ह ‘धान के कटोराÓ तो कहायेच नइ सकय। छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा के गुनगान के बारे म कवि, साहित्यकारमन सोचही तको नइ। कोनो गीत लिखबेच करही त ‘ सीमेंट, लोहा, स्टील के कोराÓ लिखहीं। सरकार के फेक्टरी लगाय के धुन ल देख के लगथे के बिदेस के सरकारमन का फेक्टरी परेमी होहीं, जतेक हमर परदेस के सरकार हावय। सोचे के बात आय जब खेत-खार नइ रइही त धान-गहूं कइसे होही?
परदेस म खेत-खार अउ किसान कमतियावत जावत हे। फेक्टरीवालेमन खेत-खार उजाड़तेच जावत हें। सरकार ह खेती-बाड़ी के जमीन कब्जाय बर नइ छोड़त हे। छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा अउ धान के कटोरा ल दुच्छा करत जावत हे, त अउ का-कहिबे।
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