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का बदलही हमरमन के सोच ह!

locationरायपुरPublished: Jan 07, 2019 09:04:52 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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का बदलही हमरमन के सोच ह!

एदे फेर आ गे नवा बछर। देस-दुनिया ह 201९ के जोरदार सुवागत करिस। रातभर मनखेमन नाचिन-गाइन। पारटी-वारटी करिन। आनी-बानी के खाइन-पिइन। पटाखा फोडिऩ। अतेक हो-हल्ला मचाइन के कान के परदा बाजे लगिस। 31 दिसंबर के रात के बारा बजिस तहां मोबाइल के घंटी बाजे लगिस। लोगनमन एक-दूसर ल बधाई देय लगिन। दूसर दिन पिकनिक मनाइन। घूमिन-फिरिन। अइसे जसन मनाइन, जइसे सबो जिनिस ह बदलइया हे, तइसे!
2018 म हमर देस-परदेस म कतकोन अइसन घटना होइस, जेकर होय म समाज के छोटकुन सोच ह जिम्मेदार हे। उत्तरपरदेस के बुलंदसहर के स्याना म हिंसा अउ इंस्पेक्टर समेत दूझन के हत्या के घटना ल भुलाय नइ जा सकय। मांस के कुटका मिले के सेती गुस्साय लोगनमन ह अब्बड़ उधम मचाइन। लोगनमन होस खो बइठिन अउ गोली मार के दूझन के परान ले लीन। ए सब देख-सुन के हम अउ आप जइसे लोगनमन चुप रहिथन। ऐहा सिरिफ बुलंदसहरभर के बात नोहय, अइसन घटना देस म कतकोन होवत रहिथे। कई पइत भीड़ ह कानून ल अपन हाथ ले लेथे। नवा बछर म ए सब बंद होय बर चाही। हिन्दू-मुसलमान के बीच नफरत खत्म होय बर चाही। नारी-परानीमन के खिलाफ होवत अनाचार, अतियार, हिंसा घलो बंद होय बर चाही।
सुवाल हावय कि का नवा बछर म नेतामन के सोच बदलहीं? चुनई के समे जउन वादा करथें, तउन ल पूरा करहीं? नेतामन एक-दूसर उप्पर सैतान, नरपिसाच, महापिचास, बरम्ह पिचास, पप्पू, जइसे भासा के परयोग करथें, का वोहा बंद हो जही? जात-धरम के नांव म वोट नइ मांगहीं? का सबके बिकास होही? का बने दिन आही? का संसद चलही? का किसानमन के परेसानी मिटा जही? का देस-परदेस म कोनो किसान ल आत्महत्या करे के नौबत नइ आही? का इलेक्ट्रानिक मीडिया ह बात के बतंगड़ बनाय बर छोड़ही? का फिलिम, बिग्यापन, मोबाइल, इंटरनेट, सोसल मीडिया म अस्लीलता परसोई बंद हो जही? का समाज म होवत चरित्र अउ नैतिक पतन बंद हो जही? का आज के लइकामन अपन संस्करीति, संस्कार ल हीने बर छोड़ दिहीं? का हमर परदेस म माओवादी समसिया खतम हो जही? भस्टाचार, रिस्वतखोरी, घपला-घोटाला, मुनाफाखाखोरी नइ होही? का छत्तीसगढ़ के तस्वीर अउ छत्तीसगढिय़ामन के तकदीर बदल जही? का छत्तीसगढ़ी ह सरकारी काम-काज अउ सिक्छा के माध्यम बनही? का छत्तीसगढ़ी ल आठवीं अनुसूची म जगा मिल जही?
बछर बदले ले सब कुछ नइ बदल जावय। बछर के संगे-संग मनखे ल बदले बर चाही। महूं चाहथंव के सबो बदल जाय। आपमन बदल जाव, मेहा बदल जावं। समाज के नानुक सोच बदल जाय। कुरीति, छुआछूत, भेदभाव मिट जाय। जात-पात, धरम, भासा, छेत्र के लड़ई-झगरा झन होय। अगर. अइसन कर सकथन त फेर बछर के पहिली दिन का, हर महीना-हर हफ्ता जस्न मनाव। धूम-धड़का मचाव। ‘सबो मनखे बदले के गोठ-बात करथें, फेर खुद नइ बदलंय। ए जरूर सोचथें के दूसर ह हमर बर बदल जाय, त अउ का-कहिबे।Ó
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