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कोन ल जरूरत हे बुढ़वामन के?c

locationरायपुरPublished: May 15, 2018 06:18:33 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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हमरो पूछइया भइया कोनो नइये गा, हमरो सुनइया-देखइया भइया कोनो नइये गा। सियान ह चउंरा म रेडियो सुनत बइठे रहिस। वोला देखके परोसी पूछिस! कइसे हस बबा?
का बतावंत बेटा, अकेल्ला मनखे। घर ह रांय-रांय करथे। जांगर नइ चलत हे त मोला कोनो पूछत घलो नइये।
बबा! तोर हाल ल देखथंव त लागथे के, दुनिया म बुढ़वामन के कोनो ल जरूरत नइये।
सिरतोन कहेस बेटा! कम से कम आज के परवार-समाज ल तो बुढ़वामन के जरूरत चिटिकभर नइये। एक जमाना म बुढ़वामन देस-समाज के ‘संपत्तिÓ होवत रहिस। आज के बेटामन के नजर ह बुढ़वामन के ‘संपत्तिÓ उप्पर होथे। कब आंखीं मूंदय अउ कब वोकर जाइजाद ल पोगरा के मजा लूटंय।
बबा! पहिली जमाना म सियानमन के कइसे पूछ-परख, मान-गउन होवत रहिस? वोमन कइसे-कइसे काम करे रहिन, तेन ल बता ना गा?
सुन बेटा! तेहा कहिनी, किस्सा, पुरान, भागवत, रमायन, लोककथा अउ सियानमन के गोठ-बात ल धियान लगाके पढ़बे-सुनबे त पता चलही के बुढ़वामन का-का जलवा देखाय हें। अकेल्ले सियान देवबरत याने भीस्म पितामह ह पूरा दस दिन तक कौरव-पांडव के जुद्ध म सबके उप्पर भारी परे रहिस। यदि वोहा खुद होके अपन मरे के तरीका नइ बतातिस त किरिस्न के पांडवमन के डहर रहत घलो वोमन जुद्ध कभु नइ जीत पातिन। आज के राजनीतिक दल जउन जवान अध्यक्छ ल लेके चिचियावत हें, वोला घलो बुढ़वामन अपन खून-पसीना ले बनाय, बढ़ाय अउ बचाय हें। देस के ये जुन्ना राजनीतिक दल ह वो सियान गांधी के नांव जप-जप के फाइदा उठावत रहिथे, जेन ल गोली मार दे गे रहिस। ऐती दुनिया के सबसे बड़का राजनीतिक दल होय के हांका परइया, चिचियइया, दावा करइया भाजपा के जर ल दूझन बुढ़वा लालकिरिस्न आडवानी अउ अटल बिहारी वाजपेयी ह तब बचाय रहिस, जब देस म पारटी ह सिकुड़ के दू के आंकड़ा म पहुंच गे रहिस। आज आडवानी के कोनो पूछइया नइये!
बबा! राजनीतिक के बात ल छोड़व। ये बतावव के आज घर-घर म सियानमन के का हाल हे?
बेटा! राजनीति म जइसे आडवानी कस सियान के हाल होगे हे, वइसे घर-घर म बुढ़वामन के होवत हे। वोकरमन के अनुभव ल ‘जुन्ना बिचारÓ कहिके कोनो नइ मानंय। वोकरमन के खवई-पियई ह घलो जियानथें। बइठई, सुतई अउ बोलई-कहई ल तो सुहाबेच नइ करंय। कोनो सामान कस बस कोन्टा म चुपेचाप परे रहंय समझथें। आज जउन जवान हे काली वोकरमन के बुढवा होवई खच्चित हे। आज दुनिया म सबले जादा जवान हमर देस म हावंय। फेर, वो दिन के सोचव, जेन दिन सबले जादा बुढ़वा इहां होंही।
बुढ़वा भीस्म पितामह के घायल होके सरसैया म गिरतेच दुरयोधन ह जुद्ध हार गे रहिस। अइसने जउन समाज, परिवार या पारटी ह बुढ़वामन के इज्जत नइ करही, वोकर एक दिन बरबाद होवई तय हे। तभो ले बुढवामन के अपमान-हीनता करे बर नइ छोड़त हें, त अउ का-कहिबे।
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