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मक्खी मार रहे हैं जीव-जंतु कल्याण बोर्ड के कर्मचारी, ये है बड़ी वजह

locationरायपुरPublished: May 24, 2018 01:33:00 pm

Submitted by:

Ashish Gupta

मक्खी मारने या मक्खी उड़ाने का सीधा अर्थ खाली-पीली बैठे रहना माना जाता है। जब किसी के पास कोई काम-धाम नहीं रहता तो यह सुनने को मिल ही जाता है।

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मक्खी मार रहे हैं जीव-जंतु कल्याण बोर्ड के कर्मचारी, ये है बड़ी वजह

राजकुमार सोनी/रायपुर. मक्खी मारने या मक्खी उड़ाने का सीधा अर्थ खाली-पीली बैठे रहना माना जाता है। जब किसी के पास कोई काम-धाम नहीं रहता तो यह सुनने को मिल ही जाता है। क्या करूं यार मक्खी मार रहा हूं। मक्खी उड़ा रहा हूं। छत्तीसगढ़ में जीव-जंतु कल्याण बोर्ड के कर्मचारी भी फि लहाल इसी मुहावरे को चरितार्थ कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में पशु-पक्षियों पर क्रूरता रोकने के लिए जीव-जंतु कल्याण बोर्ड की स्थापना 22 मार्च 2016 को हुई थी। लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी बोर्ड का कामकाज प्रारंभ नहीं हो पाया है। बोर्ड में सेटअप के हिसाब से तीन अधिकारी दो लिपिक और चतुर्थ श्रेणी के चार कर्मचारियों सहित कुल नौ लोगों की तैनाती होनी है, लेकिन अब तक मात्र पांच कर्मचारी ही नियुक्त किए गए हैं। बोर्ड में जो अधिकारी-कर्मचारी तैनात हैं उन्हें फ रवरी माह से वेतन भी नहीं दिया जा रहा है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। जब बोर्ड का गठन हुआ था तब भी कर्मचारियों को छह माह तक वेतन से वंचित कर दिया गया था।
जाहिर सी बात है कि जब वेतन नहीं मिलेगा तो कार्य प्रभावित होगा। सही समय पर वेतन न मिलने की दशा में कामकाज की रफ्तार सुस्त हो गई, जो अब भी कायम है। वेतन की लेट-लतीफी के पीछे का एक कारण सही समय पर बजट का आवंटन न होना ही माना गया। बोर्ड ने वर्ष 2016-17 में वित्त विभाग से कुल 89 लाख का बजट मांगा था, मगर 28 लाख ही मिले जो तनख्वाह में खर्च हो गए। अभी इसी साल फ रवरी माह में वित्त विभाग ने बोर्ड के सालाना कामकाज के लिए 60 लाख मंजूर किए हैं, लेकिन यह राशि भी बोर्ड को नहीं मिल पाई है।
बोर्ड में भाजपा के विधायक नवीन मार्कण्डेय और रामलाल चौहान के अलावा प्रेमशंकर गौटिया, सुरेंद्र राठौर,खेमराज वैद्य, महेंद्र पंडि़त, राजेंद्र शर्मा, केके अवधिया और भारतीय जीव-जंतु कल्याण बोर्ड चेन्नई के सचिव सुनील मानसिंह सदस्य नामित किए गए हैं। इन सदस्यों में विधायकों को छोड़कर प्रत्येक को हर माह 10 हजार का मानदेय दिया जाना प्रस्तावित है, लेकिन बजट के अभाव में सदस्यों को यह मानदेय नहीं मिल पा रहा है।

एक भी फैसले पर अमल नहीं
नियमानुसार शासकीय-अशासकीय सदस्यों की बैठक हर छह माह में अनिवार्य है,मगर दो सालों में महज एक बार पिछले साल 5 दिसम्बर को हो पाई। बोर्ड की बैठक में पशुधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की अध्यक्षता में यह तय किया गया कि कुत्ते, बिल्ली, कछुए,पक्षियों का व्यापार करने और मुर्गें-मुर्गियों को खुलेआम वाहनों पर लटकाकर ले जाने वालों पर सख्ती की जाएगी,लेकिन इस फैसले पर अब तक अमल नहीं हो पाया है।

बोर्ड के दफ्तर में पशु-पक्षियों के अवैध व्यापार और उन पर क्रूरता का एक भी मामला दर्ज नहीं है। बोर्ड के सदस्य प्रेमशंकर गौटिया कहते हैं। अकेले रायपुर में ही हम पशु-पक्षियों पर क्रूरता के सैकड़ों मामले हर रोज देखते हैं। मुर्गें-मुर्गियों को ग्राहक के सामने ही काट दिया जाता है। दुर्भाग्य से बोर्ड यह तय नहीं कर पाया है कि वह किस मकसद के लिए गठित किया गया है, उसे क्या करना है?

अभी रफ्तार सुस्त
जीव-जंतु बोर्ड के प्रभारी संयुक्त संचालक एवं वरिष्ठ चिकित्सक राजीव देवरस ने कहा कि यह सही है कि बोर्ड का कामकाज सुस्त है। बोर्ड की नियमावली का एक मसौदा मंत्रालय भेजा गया है। एक बार मसौदे को मंजूरी मिल जाएगी तो कामकाज की गति तेज हो जाएगी। फि लहाल धरसींवा के पास दतरेंगा में 2 करोड़ की लागत से पशुगृह व रूग्ण केंद्र बनाया जा रहा है। यहां लावारिस जानवरों को भी ठौर-ठिकाना मिल जाएगा। हमारी कोशिश है कि लोग जानवरों के प्रति संवेदनशील रहे।

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