आचार संहिता देश में तभी लागू होती है, जब चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। चुनाव की प्रक्रिया खत्म हो जाती है तो आचार संहिता भी खत्म हो जाती है। तब देश में अनाचार संहिता का दौर शुरू हो जाता है। अनाचार अर्थात अनीतियों का आचरण, यानी भ्रष्टाचार, बलात्कार, चोरी, डकैती। चुनाव होता है।
लोग पांच साल के लिए चुन दिए जाते हैं, अनाचार संहिता की दीवार में। सांस लेना भी दूभर हो जाता है। नेताओं को स्विस बैंक जाने, एेश करने, निजी रिश्तेदारों व चमचों का ख्याल रखने से फुरसत नहीं मिलती। फुरसत मिलती तो क्षेत्र के विकास का ख्याल करते।
जब पांच साल पूरे होने लगते हैं तब वोट का ख्याल आता है। वोट का ख्याल आता है, तो क्षेत्र का ख्याल आता है। क्षेत्र का ख्याल आता है, तो विकास का ख्याल आता है। तब तक विकास स्थिर रहता है और जब विकास का ख्याल आता है, चुनाव घोषित हो जाते हैं।
आचार संहिता लागू हो जाती है। विकास की घोषणाएं रोक देनी पड़ती है। ताकि चुनाव पर प्रभाव न पड़े। शासकीय धन का निजी हित में उपयोग न हो। यानी चार साल शासकीय धन के निजी उपयोग की छूट होती है। विकास करने की छूट होती है। तब तक का किया विकास चुनाव पर प्रभाव नहीं डालता। चुनाव के समय किया गया विकास चुनाव पर प्रभाव डालता है।
चुनाव अर्थात चुन आव वोट दे कर उन्हें। फिर ये चुन जाने पर फिर पीछे मुड कर देखते हैं कहते हैं चुन आव। उनके चमचे लौट आते हैं और देश की जनता को चुन देते हैं। चुनाव आयोग आचार संहिता लागू करने के लिए बाध्य है। नेता इसे मानने के लिए बाध्य है। जनता इससे भुगतने के लिए बाध्य है।
इसी कारण मित्रों, इस वक्त विकास की बात न करें। आचार संहिता लागू है। कुछ कहना हो तो प्रतीक्षा करें। आचार संहिता के हटने का अर्थात अनाचार संहिता, लूट, डकैती, अपहरण, बलात्कार, हत्या के चालू होने। तब तक खामोश, आचार संहिता लागू आहे।
(डॉ. महेन्द्र कुमार ठाकुर साहित्यकार और ज्योतिषी)