दो साल पहले पटाखा दुकान और गोदाम को शहर से बाहर शिफ्ट करने का शपथपत्र दे चुके व्यापारी बीच शहर दुकान सजाकर बैठे हैं। उनका झूठा तर्क जनता की सुविधा का है, जबकि जनता साफ कर चुकी है कि उसे शहर से बाहर जाकर पटाखे खरीदने में कोई परेशानी नहीं है। नहीं तो जहां दुकानें लगेंगी, वहां से खरीदना मजबूरी है। इसी मजबूर जनता को मौका मिला तो उसने खुलकर कहा, पटाखे शहर में नहीं बिकना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार प्रशासन सख्ती से कार्रवाई करे। जनता तो प्रशासन के हाथ बांधने वाले शक्तिशाली मंत्री तक को चुनाव में सबक सिखाने को तैयार है। निराश तो वे जन प्रतिनिधि कर रहे हैं जो जनभावनाओं की अनदेखी कर रहे हैं। वे नेता जो मुद्दा उठाने से पहले अपना नफा-नुकसान देखते हैं। जनता की सुरक्षा से जुड़े विषय पर भी समझौते का रास्ता बताते हैं।