छत्तीसगढ़ में प्रथम चरण के मतदान की तैयारियां पूरी हो चुकी है। राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण और सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले इस चरण के चुनाव परिणाम अगली सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे।
Chhattisgarh Election: Congress – BJP’s luck key in polling percentage
आवेश तिवारी/रायपुर. छत्तीसगढ़ में प्रथम चरण के मतदान की तैयारियां पूरी हो चुकी है। राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण और सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले इस चरण के चुनाव परिणाम अगली सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के साथ साथ दो मंत्रियों केदार कश्यप और महेश गागडा की किस्मत का भी फैसला इसी चरण में होना ।राजनांदगांव से कांग्रेस की प्रत्याशी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला की लोकप्रियता का अंदाजा भी इसी चरण के नतीजों में मिलेगा। जब हम इतिहास के आईने में प्रथम चरण मे शामिल 18 सीटों को देखते हैं तो कई चौका देने वाली चीजें नजर आती है।
छत्तीसगढ़ में प्रथम चरण के मतदान में 24 घंटे से कम का समय शेष रह गया है। प्रथम चरण की जिन 18 सीटों पर सोमवार को मत डाले जाने हैं उनमें से 13 सीटें पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास रही है। वहीं पांच पर बीजेपी का कब्ज़ा रहा है। प्रदेश के सर्वाधिक संवेदनशील सात जिलों में होने जा रहे इस मतदान में जो सवाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है वो यह कि क्या भाजपा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के राजनांदगांव जिले कांग्रेस के वर्चस्व को समाप्त कर सकेगी, जहां 6 में 4 सीटों पर कांग्रेस काबिज है।
दूसरा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस, बस्तर में 2013 में किए गए प्रदर्शन को दोहरा पाएगी? इन दोनों सवालों के जवाब को जब हम टटोलते हुए इतिहास के आइने में देखते हैं तो पाते हैं कि अगर इन सभी विधानसभा सीटों पर मत प्रतिशत 80 से ऊपर हुआ तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा और कम मतदान सीधे-सीधे भाजपा को फायदा पहुंचाएगा। पिछली बार इन 13 सीटों पर 68 फीसदी मतदान हुआ था। इनमें जिन-जिन सीटों पर मतदान 80 फीसदी के लगभग हुआ वहां कांग्रेस जीती और जहां इससे कम वोट पड़े वहां भाजपा सफल रही।
अधिक वोट पड़ने के मायने पिछले 15 दिन के दौरान माओवाद प्रभावित बस्तर में, जहां प्रथम चरण के चुनाव होने हैं, दो बड़ी माओवादी वारदातें हुई हैं। ऐसे में मत प्रतिशत को लेकर चिंता चुनाव आयोग को तो है ही राजनीतिक दलों को भी है। नहीं भूला जाना चाहिए कि वर्ष 2013 में बस्तर, कोंडागांव केशकाल, राजनांदगाव, डोंगरगढ़, मोहला-मानपुर, खुज्जी, डोंगरगांव, खैरागढ़ की सीटों पर 80 फीसदी से अधिक मतदान हुआ था। इसमें से सात सीटें कांग्रेस के पास थी।
वहीं कांग्रेस के ही खाते में गई कांकेर, भानुप्रतापपुर और चित्रकोट में 80 फीसदी से बस थोड़ा बहुत कम ही मतदान हुआ था। कोंटा और बीजापुर ऐसी अपवाद सीटें रहीं, जहां मतदान 50 फीसदी से कम हुआ, लेकिन जीत कांग्रेस को ही मिली। अगर इस बार के चुनाव में कोंटा, बीजापुर, दंतेवाड़ा जैसे कम वोटिंग प्रतिशत वाली सीटों पर मतदान बढ़ता है। जिसके दावे भी किए जा रहे हैं तो इसका असर नतीजों में देखने को मिल सकता है।
कांग्रेस के विधायकों को भी झेलनी पड़ेगी अपने क्षेत्र में नाराजगी प्रथम चरण में हासिल की गई 13 सीटों में से कांग्रेस ने केवल एक सीट कांकेर पर ही अपने उम्मीदवार को बदला है बाकी 12 सीटों पर कांग्रेस के विधायक चुनाव लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेसी विधायकों के पुन: सफल होने के प्रतिशत को देखा जाए तो कांग्रेस के लिए हालात चिंता पैदा करने वाले हैं।
2013 के चुनाव में कांग्रेस के 35 फीसदी विधायक ही दुबारा चुनाव जीत पाए ते तो 2008 में 50 फीसदी विधायक फिर से जीतने में सफल रहे थे। दूसरी तरफ भाजपा ने अपनी छह सीटों में से अंतागढ़ में ही उम्मीदवार बदला है पार्टी ने यहां से अपने सांसद विक्रम उसेंडी को चुनाव मैदान में उतारा है। यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस को प्रथम चरण में अपने विधायकों के प्रति एंटी इन्कम्बेन्सी से गंभीर तौर से जूझना पड़ेगा वहीं भाजपा के लिए यह चरण थोड़ा सुविधाजनक होगा।
मत प्रतिशत बताएगा आदिवासी किधर प्रथम चरण की जिन सीटों पर फिलहाल भाजपा का कब्जा है, उनमें से तीन सीटें बेहद प्रतिष्ठापूर्ण हैं। राजनांदगांव से जहां मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं नारायणपुर से शिक्षा मंत्री केदार कश्यप और बीजापुर से वन मंत्री महेश गागड़ा विधायक हैं। भाजपा के लिए जहां इन तीनों सीटों के साथ-साथ अतिरिक्त सीटों पर कब्जे का दबाव है। वहीं कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है कि वह 2013 का प्रदर्शन दोहराए।
पहले चरण में जिन 18 सीटों पर मतदान होगा उनमें से 12 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए और एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। कांग्रेस का वोट बैंक अनुसूचित जनजाति ही रहा है, लेकिन भाजपा पूर्व के चुनावों में इसमें सेंध लगाने में सफल रही है। इस चरण का मत प्रतिशत और इस चरण का परिणाम इस बात का भी फैसला करेगा कि कांग्रेस के विधायक कितना आदिवासियों के दिलों तक पहुंचे हैं या फिर माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ में विकास कितनी गहराई तक पहुंचा है।