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किसानों के चुनावी हितैषी

locationरायपुरPublished: Dec 08, 2018 05:29:50 pm

यदि कृषि क्षेत्र में लगातार सुधार हो रहा है तो किसान अब भी गरीब क्यों है? इसका जवाब नीति निर्धारकों के पास है, न विशेषज्ञों के…

Chhattisgarh Election - Farmers' well wishers

Chhattisgarh Election – Farmers’ well wishers

योगेश मिश्रा@रायपुर. केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन वर्तमान में ये अन्नदाता अपने फसल की लागत तक नहीं निकाल पा रहे हैं। अगले चार साल में क्या चमत्कार होगा कोई नहीं जानता। भारत में किसानों की दुर्दशा के जिम्मेदार ही उनके सबसे बड़े शुभचिंतक होने का दावा करते हैं। सत्ता में बैठे राजनीतिक दल किसानों को खुशहाली का प्रमाण पत्र बांटते हैं और विपक्ष में आते ही उनकी समस्याओं की फेहरिस्त गिनाने लगते हैं। हाल ही में दिल्ली में जब किसान अपनी फसल का सही मूल्य मांगने के लिए एकत्रित हुए तो कई राजनीतिक दल उनके समर्थन में आ गए। मंच पर राहुल गाँधी सहित महागठबंधन के नेता किसानों के दर्द से द्रवित हो न्याय की गुहार कर रहे थे। चुनाव जो कराए सो कम है।

क्या जनता हर चुनाव में सही फैसला लेती है?

कृषि क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर भारत की अच्छी खासी साख है। विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों के उत्पादन के मामले में भारत विश्व में दूसरे और सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि के मामले में दसवें स्थान पर है। दुनिया में भारत मसाला, दाल, दूध, चाय, काजू और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और गेहूं, चावल, फल, सब्जी, गन्ना, कपास और तिलहन उत्पादन के मामले में दूसरे नंबर पर है।

राफेल बनाम राम मंदिर – जनाधार का फार्मूला क्या?

आश्चर्य है, इतने आकर्षक आंकड़ों के बावजूद पिछले सात दशकों में कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्र का देश के सकल मूल्य वर्धित (ग्रॉस वैल्यू एडेड या जीवीए) में योगदान तीन गुना कम हो गया। वर्तमान मूल्य पर आंकलन करें तो कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्र का भारत के सकल मूल्य वर्धित में योगदान 51.81 प्रतिशत (1950-51) से घटकर 17.32 फीसदी (2016-17) रह गया है। यदि कृषि क्षेत्र में लगातार सुधार हो रहा है तो किसान अब भी गरीब क्यों है? इसका जवाब नीति निर्धारकों के पास है, न विशेषज्ञों के, फिर भी राजनीतिक दल चुनावी मंच पर किसानों का भाग्य चमकाने की जादुई छड़ी रखने का दावा करते हैं।

chhattisgarh pollpedia – Episode 11 EVM नायक या खलनायक?

भारत की करीब 58 प्रतिशत आबादी की आय का मुख्य स्रोत कृषि है। अधिकांश किसानों के पास एक एकड़ से कम कृषि भूमि है। औद्योगीकरण की वजह से भूमिहीन किसानों की तादाद भी बढ़ी है। विश्व के 20 कृषि जलवायु क्षेत्रों में से पंद्रह भारत में हैं। इसी तरह दुनिया में मृदा (मिट्टी) के 60 प्रकारों में से 46 भारत में पाए जाते हैं। लेकिन देश का किसान कृषि जलवायु और मृदा की विविधता से कई दशक तक अनभिज्ञ था, छोटे से कृषि भूमि में बहुचक्रिय फसल से लाभ लेने की बात तो उसके लिए दूर की कौड़ी थी। इसलिए आज भी वह फसलों के लिए घोषित सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से अपना भविष्य सँवारने का स्वपन देखता है।

hallabol – Episode 325 – EVM पर इतना अविश्वास क्यों?

15 अगस्त 1947 से अब तक 71 साल में भारत में 27 वित्त मंत्री हुए। नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में भारत को वैश्विक पटल पर एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने की भूमिका बन रही थी। दौर था वैश्वीकरण का। उम्मीद थी कि ऐसे समय में दुनिया भर में अपना लोहा मनवाने वाले अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह कृषि क्षेत्र में भारी भरकम परिवर्तन लाते, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कृषि क्षेत्र पिछड़ता चला गया। 1990-91 में कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्र का देश के सकल मूल्य वर्धित में शेयर 29.02 प्रतिशत से घटकर 1999-2000 में 24.50 फीसदी पर आ गया।

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पिछले 28 वर्षों में (10 नवम्बर 1990 से अब तक) आठ वित्त मंत्री हुए – छह पूर्ण-कालिक और दो पार्ट-टाइमर। वित्त मंत्रालय एक महीने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के पास था और तीन महीने आठ दिनों के लिए वर्तमान रेल मंत्री पियूष गोयल के पास। अन्य छह वित्त मंत्रियों में से तीन भाजपा से हैं – यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह और अरुण जेटली तथा तीन कांग्रेस से – पी चिदम्बरम, मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी। इनसे अपेंक्षा थी कि ये किसानों को समर्थन मूल्य के चुनावी प्रलोभन से उबार कर वैश्विक बाज़ार में उनके फसलों की मांग बढ़ाने के लिए नीतियां बनाते, लेकिन कृषि क्षेत्र में सुधार इनकी प्राथमिकता में कभी नहीं रहा।

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