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CG Election 2018: कंक्रीट के जंगल में कैद एक कस्बा, अब आजादी चाहता है

locationरायपुरPublished: Nov 09, 2018 05:27:09 pm

Submitted by:

Ashish Gupta

2008 में भिलाई नगर और दुर्ग विधानसभा के कुछ क्षेत्रों को अलग कर पृथक वैशाली नगर विधानसभा क्षेत्र का गठन किया गया। यहां की जनता ने पारी-पारी से भाजपा और कांग्रेस को अवसर दिया। लेकिन…

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रायपुर. 2008 में भिलाई नगर और दुर्ग विधानसभा के कुछ क्षेत्रों को अलग कर पृथक वैशाली नगर विधानसभा क्षेत्र का गठन किया गया। अब तक हुए तीन चुनाव (सरोज पांडेय के सांसद बनने के बाद 2010 में उपचनुाव) में यहां की जनता ने पारी-पारी से भाजपा और कांग्रेस को अवसर दिया। लेकिन मिनी भारत कहे जाने वाले भिलाई का आधा हिस्सा होने के बाद भी वैशाली नगर अभी तक अपने कस्बाई स्वरूप से मुक्त नहीं हुआ है। पढ़िए भिलाई से निर्मल साहू की रिपोर्ट
यहां पटरी इस पार (सुपेला, कोहका कैंप क्षेत्र) और उस पार (भिलाई) का भेद साफ दिखता है। लोगों में इस बात को लेकर रंज भी है। उनका साफ कहना है कि जब तक सार्थक और ईमानदार कोशिश नहीं होगी वैशाली नगर की तस्वीर नहीं बदलने वाली। पटरी पार का फासला तभी मिट सकेगा जब राजनीति दलें विकास पर राजनीति नहीं करेंगे।
यह है सुपेला घड़ी चौक। दक्षिणी पूर्वी मध्य रेलवे की पटरी के समानांतर शहर के बीचोंबीच गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग परहर दूसरे-तीसरे मिनट में जाम की स्थिति बन रही है। बेतरतीब यातायात और वाहनों की गुत्थमगुत्थी देखकर इस संकोच के साथ कि यही छग की शिक्षाधानी भिलाई है जिसके सुपर स्मार्ट सिटी बनने का सपना लोग संजो रहे हैं, मैं चौक पार कर सुपेला पुरानी बस्ती के रास्ते हो लिया। रावण भाठा जो इस क्षेत्र की पहचान है एक दूकान पर दो युवक राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के लेकर वे कयास लगा रहे थे।
नाम गिनाकर उनकी उनकी अच्छाइयां और खामियां गिना रहे थे। मैं भी चर्चा में शामिल हो गया ताकि अपनी खबर का टॉस्क पूरा कर सकंू। उनकी बेकार (मेरे नजरिए से) की बहस को अपने जरूरत की चर्चा में बदला। मेरे सवाल पहले लगभग 24 साल विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण फिर अब 20 साल से नगर निगम गठन के बाद भी पटरी पार की तस्वीर क्यों नहीं बदली? युवा रसीद तपाक से बोल उठा पॉलिटिक्स।ऐसा लगता है कि सिर्फ पटरी उस पार (टाउनशिप) ही भिलाई है। हम लोग तो आज भी किसी गांव, खेड़े के निवासी हैं।

केवल कंक्रीट का जंगल उगा रहे हैं
बात यहीं समाप्त कर परदेशी चौक जिसे पुराने लोग बघवा मंदिर के नाम से जानते हैं, की ओर बढ़ गया। बरगद के पेड़ के नीचे कुछ बुजुर्ग बैठे थे। 77 साल के रामधुनी यादव बताने लगे 1974 में साडा बना। शिवनाथ से लेकर खारून तक क्षेत्र था। नियोजित विकास हो इसलिए साडा को भंग कर कर नगरीय निकायों में बांटा, लेकिन आज भी स्थिति नहीं सुधरी। जीवन लाल साहू ने कहा धूल मुक्त सडक़ें, गंदगी व मच्छर से मुक्ति अब भी सपना है। पेड़-पौधों का नामोनिशन नहीं है। केवल कंक्रीट का जंगल उगा रहे हैं।

शासन की योजना का लाभ नहीं मिल रहा
यह है कैंप क्षेत्र। श्रमिक बहुल्य है। लगभग डेढ़ लाख की आाबादी होगी।ज्यादातर उत्तर भारतवासी रहते हैं। भाषा,व्यवहार और व्यक्तित्व में साफ झलकता भी है। जिस गली से भी गुजरेंगे भोजपुरी और बिहारी लहजे में बात सुनने को मिलेंगे।पहले निचली और गंदी बस्तियां थी। अब स्थिति थोड़ी सुधरी है। यहां लोगों को शिकायत सरकारी योजनाओं को लाभ नहीं मिलने से है। सुधा प्रसाद कहती है राशन कार्ड से उनके परिवारों के नाम कट गए। वैजयंती से पीएम आवास का फॉर्म भरवा लिया, अब तक नहीं बना। रेखा सिंह और रामकली की एक जैसी शिकायत है। स्मार्ट कार्ड से इलाज नहीं हो रहा है।

ड्राफ्ट बनकर न रह जाए मास्टर प्लान
राह चलते मैं एक आर्किटेक्ट के दफ्तर में चला गया। वहां पहले से ही मोरध्वज चंद्राकर, शिवप्रसाद, राजेश ताम्रकार और गितेश ठाकुर बैठे थे। चंद्राकर ने कहा 1986 में मास्टर प्लान तो बना, मगर केवल ड्राफ्ट बनकर ही रह गया। उस पर क्रियान्वयन नहीं हो सका। अब 2030 तक के लिए फिर नया प्लान बन रहा है। छह बार शासन ड्राफ्ट लौटा चुका है। सातवीं बार भेजने के लिए लोगों से फिर दावा आपत्ति लिए गए हैं।

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