केवल कंक्रीट का जंगल उगा रहे हैं
बात यहीं समाप्त कर परदेशी चौक जिसे पुराने लोग बघवा मंदिर के नाम से जानते हैं, की ओर बढ़ गया। बरगद के पेड़ के नीचे कुछ बुजुर्ग बैठे थे। 77 साल के रामधुनी यादव बताने लगे 1974 में साडा बना। शिवनाथ से लेकर खारून तक क्षेत्र था। नियोजित विकास हो इसलिए साडा को भंग कर कर नगरीय निकायों में बांटा, लेकिन आज भी स्थिति नहीं सुधरी। जीवन लाल साहू ने कहा धूल मुक्त सडक़ें, गंदगी व मच्छर से मुक्ति अब भी सपना है। पेड़-पौधों का नामोनिशन नहीं है। केवल कंक्रीट का जंगल उगा रहे हैं।
शासन की योजना का लाभ नहीं मिल रहा
यह है कैंप क्षेत्र। श्रमिक बहुल्य है। लगभग डेढ़ लाख की आाबादी होगी।ज्यादातर उत्तर भारतवासी रहते हैं। भाषा,व्यवहार और व्यक्तित्व में साफ झलकता भी है। जिस गली से भी गुजरेंगे भोजपुरी और बिहारी लहजे में बात सुनने को मिलेंगे।पहले निचली और गंदी बस्तियां थी। अब स्थिति थोड़ी सुधरी है। यहां लोगों को शिकायत सरकारी योजनाओं को लाभ नहीं मिलने से है। सुधा प्रसाद कहती है राशन कार्ड से उनके परिवारों के नाम कट गए। वैजयंती से पीएम आवास का फॉर्म भरवा लिया, अब तक नहीं बना। रेखा सिंह और रामकली की एक जैसी शिकायत है। स्मार्ट कार्ड से इलाज नहीं हो रहा है।
ड्राफ्ट बनकर न रह जाए मास्टर प्लान
राह चलते मैं एक आर्किटेक्ट के दफ्तर में चला गया। वहां पहले से ही मोरध्वज चंद्राकर, शिवप्रसाद, राजेश ताम्रकार और गितेश ठाकुर बैठे थे। चंद्राकर ने कहा 1986 में मास्टर प्लान तो बना, मगर केवल ड्राफ्ट बनकर ही रह गया। उस पर क्रियान्वयन नहीं हो सका। अब 2030 तक के लिए फिर नया प्लान बन रहा है। छह बार शासन ड्राफ्ट लौटा चुका है। सातवीं बार भेजने के लिए लोगों से फिर दावा आपत्ति लिए गए हैं।