‘पत्रिका’ पड़ताल में सामने आया कि घरों में बुखार नापने के लिए इस्तेमाल में आने वाले थर्मामीटर, बीपी नापने की मशीन, शुगर टेस्टिंग मशीन, गर्दन और कमर में बांधने वाले पट्टे समेत 40 प्रतिशत मेड-इन-चाइना सामग्री का इस्तेमाल कर रहे हैं। अस्पतालों में तो इनका प्रतिशत 50 से अधिक है। छत्तीसगढ़ में सालाना करीब 450 और रायपुर में 250 करोड़ रुपए का दवा कारोबार है। यानी हम बीमार पड़ रहे हैं और हमारी बीमारी से चीन मालामाल हो रहा है।
कारोबारियों का कहना है कि दवा अतिआवश्यक सामग्री है। हम देश में इसके विकल्प तलाशने होंगे। कारोबारियों ने अब कहना शुरू कर दिया है कि सस्ते के चक्कर में दवा निर्माता चीन से कच्चा माल खरीदते हैं। अपना मुनाफा कम करके अच्छा माल दूसरे देशों से खरीद सकते हैं। या फिर भारत में ही एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) तैयार किया जा सकता है।
मेड इन चाइना इक्विपमेंट
थर्मामीटर, ऑर्थोपेडिक्स इंप्लांट, कॉर्डियक इंप्लांट, सर्जिकल थ्रेडस, आई लेंस प्रमुख हैं।
क्या कहते हैं दवा कारोबारी
अतिआवश्यक उपकरणों सप्लाई एकाएक बंद नहीं की जा सकती। देश में अतिआवश्यक उपकरणों के भी विकल्प तलाशे जा रहे हैं। मौजूदा विवाद को देखते हुए नए ऑर्डर नहीं दिए जा रहे हैं।
-अश्विनी विग, सचिव, जिला दवा विक्रेता संघ, रायपुर
दवा के क्षेत्र में हमें आज नहीं तो कल आत्मनिर्भर बनना होगा। सस्ते के चक्कर में हम चीन पर निर्भर रहते हैं, क्यों? अब बात गुणवत्ता की हो।
-विनय कृपलानी, अध्यक्ष, जिला केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन
जो चीनी सामान स्टॉक में हैं, उसे बेचना पड़ेगा। जब तक विवाद खत्म नहीं हो जाता तब तक चीनी कंपनियों को नए ऑर्डर नहीं दिए जा रहे हैं।
-अविनाश अग्रवाल, महासचिव, छत्तीसगढ़ स्टेट केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन, छत्तीसगढ़