script1200 जवानों की निगहबानी में छत्तीसगढ़-तेलंगाना सरहद पर बन रहा विकास का ड्रीम प्रोजेक्ट | Chhattisgarh telangana Border dream Project | Patrika News

1200 जवानों की निगहबानी में छत्तीसगढ़-तेलंगाना सरहद पर बन रहा विकास का ड्रीम प्रोजेक्ट

locationरायपुरPublished: Jul 10, 2018 10:47:13 pm

दशकों से विकास से कोसो दूर क्षेत्र प्रदेश का हिस्सा होते हुए भी है अलग-थलगलाल आतंक के साए में जी रहे आदिवासियों को दिखी उम्मीद की किरणमाओवादियों की पैठ होने के कारण है अतिसंवेदनशील

army

1200 जवानों की निगहबानी में छत्तीसगढ़-तेलंगाना सरहद पर बन रहा विकास का ड्रीम प्रोजेक्ट

आकाश शुक्ला@रायपुर. छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के सरहद को जोडऩे वाले पामेड़ गांव का लहूलुहान क्षेत्र दशकों से विकास की राह ताक रहा है। बीजापुर जिले के उसूर ब्लॉक में स्थित यह इलाका दुर्गम होने के साथ ही माओवादी दृष्टि से अतिसंवेदनशील है। जहां आकर सरकार के विकास के सारे दावे मिथ्या नजर आते हैं।

प्रदेश के अंतिम छोर पर बसा यह गांव घोर जंगलों के बीच होने और माओवादियों के प्रभाव के कारण आज तक यहां ग्रामीणों को शासन की किसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल सका है। विडंबना यह है कि यहां छोटी से छोटी जरूरतों के लिए भी ग्रामीणों को तेलंगाना पर ही निर्भर रहना पड़ता है। बिजली, सडक़, पानी, शिक्षा तो दूर ग्रामीणों को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती। पूर्ण रूप से ग्रामीण जंगलों पर ही आश्रित हैं। लेकिन अब यहां सडक़ निर्माण शुरू होने से इसे नई पहचान और दिशा मिल पाएगी।

शासन द्वारा घोर जंगल के बीच बसे आदिवासियों को विकास की मूल धारा से जोडऩे के लिए पामेड़ से तिप्पापुरम तक अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत सरकार करोड़ की लागत से 10 किमी सडक़ निर्माण करा रही है। लेकिन यहां बता दें कि इस सडक़ का निर्माण इतना आसान नहीं है। महज 10 किलोमीटर की सडक़ को बनाने के लिए पुलिस सहित चार कंपनियों के लगभग 1200 से अधिक जवान तैनात किए गए हैं। पामेड़ थाना में पदस्थ एसआई हृदय शंकर पटेल व एसटीएफ के कंपनी कमांडर रूद्र शुक्ला ने बताया कि अतिसंवेदशील इलाका होने के कारण यह निर्माण काफी चुनौतियों से भरा है। 10 किमी के सडक़ निर्माण को कराने में सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन, एसटीएफ, सीएसएफ, पुलिस के लगभग 1200 से अधिक जवान मार्ग निर्माण को सुरक्षा देने में लगे हुए हंै।

army

विशेष रणनीति बनाकर कर रहे कार्य

एसटीएफ कंपनी कमांडर रूद्र शुक्ला ने बताया कि माओवादी निर्माण कार्य को ध्वस्त करने घात लगाए बैठे हैं। माओवादियों के लगातार आईईडी लगाने की कोशिशों को नाकाम कर रही है। वे किसी तरह का नुकसान न पहुंचाए, इसके लिए पुलिस व सुरक्षा बलों द्वारा रोड ओपनिंग में निकलते हैं। जिसके बाद कार्य शुरू होता है।

सुरक्षा की दृष्टि से हर रोज जगह बदल-बदल कर कार्य कराया जा रहा है। अर्थात एक दिन पहले यह पता नहीं होता कि किस जगह से कार्य शुरू करना है। सडक़ निर्माण कार्य के दौरान जवान 100-100 मीटर की दूरी पर दो से चार ४ जवान मुस्तैदी के साथ सडक़ निर्माण कार्य को सुरक्षा देने में लगे हुए हैं। इसके अलावा काम कर रहे मजदूरों को भी सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है। कंपनी कमांडर रूद्र ने बताया कि इस क्षेत्र को सुरक्षा देने कई जवानों धरती को अपने खून से सींचा है। उनकी कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी। दो से तीन माह के भीतर ही यहां सडक़ बनकर तैयार हो जाएगा।


…अब बदलेगी सूरत

बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वर्षों से अछूते आदिवासी ग्रामीणों ने बातचीत के दौरान नम आखों से बताया कि जैसे-तैसे जंगल झाडिय़ों के बीच से १० किमी तक का सफर पगडंडियों के सहारे तय कर जरूरत के सामान के लिए तेलंगाना पर आश्रित रहते हैं। सडक़ निर्माण से पूर्व इस १० किमी के फासले को तय करने के लिए आधा दिन का समय लग जाता था।

कई बार समय पर नहीं पहुंच पाने की वजह से उन्हें रात तेलंगाना में ही गुजारना पड़ता था। फिर सुबह सफर तय करते थे। बारिश में पूरी तरह संपर्क टूट जाता था। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है, निर्माण कार्य के शुरू होने से दुर्गम जंगली क्षेत्रों में बसे आदिवासी तो खुश हैं, लेकिन छग शासन और जवानों के लिए यह निर्माण कार्य किसी चुनौतियों से कम नहीं है।

army
 


“छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सरहद पामेड़ से तिप्पापुरम तक सडक़ निर्माण हो रहा है। माओवाद प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से अतिसंवेदनशील इलाका है। इसलिए जवानों की सुरक्षा में कार्य पूर्ण किया जा रहा है। रमन सरकार के नेतृत्व में लगातार बस्तर में विकास हो रहा है। सरकार माओवाद को लेकर विशेष रणनीति बनाकर कार्य कर रही है। जल्द ही बस्तर में पूर्ण रूप से माओवाद का सफाया हो जाएगा।”

– रामसेवक पैकरा, गृहमंत्री, छत्तीसगढ़

“वर्तमान में जीएसबी और डब्ल्यूबीएम व ब्रिज निर्माण काफी तेजी से हो रहा है। जवान मुस्तैदी के साथ सडक़ को सुरक्षा प्रदान करने में लगे हुए हैं। दिसंबर तक यह कार्य पूर्ण हो जाएगा। इससे दुर्गम क्षेत्रों के आदिवासी को लाभ मिलेगा।”

– डॉ. अयाज तंबोली, कलक्टर, बीजापुर

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो