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कहीं बून्द बून्द को तरस रहे हैं तो कहीं पानी के लिए ही पानी बर्बाद कर रहे हैं लोग

locationरायपुरPublished: Jun 10, 2019 05:36:56 pm

Submitted by:

Karunakant Chaubey

एनजीटी (NGT) के अनुसार पेयजल में 500 या उससे अधिक टीडीएस (TDS) पाए जाने वाले क्षेत्रों में ही आरओ (RO) का उपयोग करना चाहिए। अनावश्यक रूप से आरओ का उपयोग कर पानी प्यूरीफाई करने में ढाई से तीन गुना अधिक पानी खर्च हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक लीटर आरओ प्यूरीफाइड पानी लेने के लिए 2.50 से 3 लीटर पानी खर्च (Wastage of water) करना पड़ता है

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कहीं बून्द बून्द को तरस रहे हैं तो कहीं पानी के लिए ही पानी बर्बाद कर रहे हैं लोग

रायपुर. रायपुरवासियों को साफ पानी नहीं मिलने से रोजाना घरों में 80 लाख लीटर से अधिक पानी बर्बाद हो रहा है। हालात ये हैं कि टोटल डिजाल्व सॉलिड्स (टीडीएस) की मात्रा 350 से कम होने के बावजूद राजधानी में करीब आठ लाख लोग आरओ (reverse osmosis) का पानी पी रहे हैं।

जबकि एनजीटी (NGT) के अनुसार पेयजल में 500 या उससे अधिक टीडीएस (TDS) पाए जाने वाले क्षेत्रों में ही आरओ (RO) का उपयोग करना चाहिए। अनावश्यक रूप से आरओ का उपयोग कर पानी प्यूरीफाई करने में ढाई से तीन गुना अधिक पानी खर्च (Wastage of water) हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक लीटर आरओ प्यूरीफाइड पानी लेने के लिए 2.50 से 3 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है।
एेसे में प्रति व्यक्ति यदि रोजाना 5 लीटर पेयजल उपयोग में लाता है, तो राजधानी की 16 लाख की आबादी में से 8 लाख लोगों को 40 लाख लीटर पानी चाहिए। 40 लाख आरओ (RO) वाटर के लिए 120 लाख लीटर खर्च (Wastage of water) करना पड़ रहा है। इसमें से 80 लाख लीटर पानी बर्बाद हो जाता है।
घरों में आरओ से निकलने वाले वेस्टेज पानी (Wastage of water) के उपयोग की कोई व्यवस्था नहीं होती है और वह बर्बाद हो जाता है। इसे लेकर बीते दिनों एनजीटी (national green tribunal) ने भी केंद्र सरकार को 500 से कम टीडीएस वाले क्षेत्रों में आरओ के उपयोग को प्रतिबंधित करने के साथ वेस्टेज पानी को भी अन्य निस्तारी कार्यों में उपयोग को बढ़ावा देने निर्देशित किया है।
बर्बादी के आंकड़ों को ऐसे समझें
– राजधानी की कुल आबादी 16 लाख

– आरओ का उपयोग करने वाले 8 लाख (लगभग)
– प्रति व्यक्ति 5 लीटर पेयजल रोजाना खपत

– आरओ में 2.50 से 3 लीटर पानी में से 1 लीटर मिलता है
– 40 लाख लीटर आरओ वाटर के लिए 120 लाख लीटर पानी का उपयोग
– प्रोसेसिंग के बाद 80 लाख लीटर पानी हो रहा बर्बाद

आपके यहां आरओ है तो पानी बचाने के ये उपाय जरूर करें

एनजीटी (NGT) के सुझाव के अनुसार आरओ (RO) के उपयोग से पानी की बड़ी मात्रा में बर्बादी (Wastage of water) होती है। एेसे में जिन क्षेत्रों में खारे पानी या टीडीएस की मात्रा 500 या उससे अधिक है, उन क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जा सकता है। साथ ही पानी की बर्बादी से बचने के लिए प्रोसेसिंग के बाद निकले वेस्ट वाटर को एकत्रित कर बर्तन-गाड़ी धोने, बागवानी सहित अन्य निस्तारी कार्यों में उपयोग में लाया जा सकता है।
बैक्टीरिया से बचने के लिए आरओ का उपयोग

राजधानी में नगर निगम द्वारा सप्लाई पेयजल में लगातार गंदगी की शिकायतें मिलती रहती है। इसका मूल कारण पेयजल की पाइपलाइन में लीकेज और नालियों के बीच से होकर गुजरना है। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. शम्स परवेज के अनुसार लोग टीडीएस के बजाए बैक्टीरिया से बचने के लिए आरओ का उपयोग कर रहे हैं। एेसा नहीं करने वाले लोगों को लगातार गले में खराश और पेट संबंधी विकारों का सामना करना पड़ता है। वहीं, आरओ के उपयोग से पानी के मिनरल्स खत्म हो जाते हैं और शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है।
प्रदेश में महज 1 फीसदी क्षेत्र में खारा पानी

पं. रविशंकर शुक्ल विवि के वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रदेश में सिर्फ बेमेतरा क्षेत्र (प्रदेश का 1 फीसदी क्षेत्र) में ही खारे पानी की शिकायत है। वहीं, बस्तर में आयरन, तमनार, जगदलपुर, रायगढ़ में फ्लोराइड, राजनांदगांव दक्षिण में आर्सेनिक जैसे तत्व पेयजल में पाए जाते हैं।
इन जगहों में पेयजल की सफाई के लिए तत्व विशेष के अनुसार संयंत्र लगाए जा सकते हैं। जबकि प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में टीडीएस (TDS) की मात्रा 350 से कम ही मिलती है। एेसे में अनावश्यक रूप से आरओ के उपयोग से पानी के वेस्ट होने का आंकड़ा करोड़ों लीटर को पार करता है।
कुछ क्षेत्र में ही खारे पानी की शिकायत

बेमेतरा से लगे क्षेत्र में खारे पानी की समस्या है, जो कि पूरे प्रदेश का महज 1 फीसदी ही होगा। साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों की समस्याएं भिन्न हैं। एेसे में वहां पानी की जांच के बाद पाए जाने वाले तत्वों के अनुसार संयंत्र लगाकर पानी को साफ किया जा सकता है।
-डॉ. निनाद बोधनकर, भू-जल वैज्ञानिक

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