यह प्रोजेक्ट नगर निगम द्वारा शहर के सभी स्लम बस्तियों में मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजनाके तहत एक-एक एम्बुलेंस हर दिन तैनात करेगा। इस एम्बुलेंस में ही वहां के लोगों का प्राथमिक इलाज किया जाएगा। इसके बाद जरूरत पडऩे पर एम्बुलेंस में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर मरीज को जिला अस्पताल या आंबेडकर अस्पताल में रिफर करेगा। [typography_font:14pt;” >रायपुर. प्रदेश में सभी नगरीय निकायों में शासन के आदेश के बाद मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना शुरू करने की कवायद शुरू कर दी गई है। नगर निगम रायपुर में भी प्रथम चरण में 15 स्लम बस्तियों में 15 एम्बुलेंस उतारने की योजना है। लेकिन निगम प्रशासन ने खुद संचालन करने के बजाए इसे ठेके पर देने पर देने का निर्णय लिया है। क्योंकि निगम के पास उनके खुद के अस्पतालों में भी डॉक्टर और स्टाफ की कमी है। ऐसे में निगम प्रशासन ने ठेके पर संचालित करने का निर्णय लिया है। जानकारी के अनुसार 12 जून को निगम मुख्यालय में प्री-बिड की मीटिंग रखी गई है। इसके बाद इच्छुक एजेंसियों को 22 जून तक टेंडर डालने को कहा जाएगा, ताकि जिस एजेंसी की सबसे कम दर रहेगी उसे ठेका दिया जाएगा। राजधानी समेत प्रदेशभर के बड़े-छोटे अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या जिस एजेंसी को ठेका मिलेगा, उसे एम्बुलेंस में सात घंटे की ड्यूटी के लिए एमबीबीएस डॉक्टर और नर्स मिलेंगे। क्योंकि कोई भी स्टूडेंट्स एमबीबीएस करने के बाद पीजी करता है। निगम के अस्पतालों में भी डॉक्टर्स, नर्स नहीं है। 3-5 लाख तक आएगा हर माह खर्च जानकारी के अनुसार नगर निगम जिस एजेंसी को ठेका उसे डॉक्टर्स, नर्स, स्टाफ और ड्राइवर व मेंटेनेंस में तीन से चार लाख रुपए हर महीने खर्च करना पड़ेगा। जिसका भुगतान निगम एजेंसी को करेगा, फिर एजेंसी स्टाफ को पेमेंट करेगा। वैसे भी नगर निगम में अधिकांश काम प्लेसमेंट के भरोसे चल रहा है। निगम के अधिकारी खुद स्थाई हैं, लेकिन जो कई सालों से प्लेसमेंट पर काम कर रहे हैं। एक और महत्वपूर्ण काम को प्लेसमेंट पर देने का निर्णय लिया गया है। नगर निगम रायपुर के अपर आयुक्त पुलक भट्टाचार्य का कहना है कि जो कंपनी एमबीबीएस डॉक्टर लाएंगे उसे ही ठेका दिया जाएगा। यदि किसी दिन एमबीबीएस डॉक्टर नहीं आए और कैम्प लगा, तो भी से काउंट नहीं किया जाएगा। शासन को डॉक्टर नहीं मिलते हैं, इसलिए तो निजी एजेंसी को यह काम सौंपा जा रहा है। यह स्कीम बहुत अच्छी है। दो-तीन महीने में स्लम बस्तियों में कैंप लगाना शुरू हो जाएगा।