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प्लाज्मा थैरेपी के लिए सही मरीज और डोनर का चयन है महत्वपूर्ण, तभी बढ़ता है सक्सेस रेट

locationरायपुरPublished: Nov 15, 2020 07:54:39 pm

Submitted by:

Karunakant Chaubey

प्रदेश के किसी भी सरकारी संस्थान को सरकार द्वारा प्लाज्मा थैरेपी दिए जाने की मंजूरी नहीं दी गई है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने अब तक गाइडलाइन जारी नहीं है, जबकि दूसरी तरफ निजी संस्थान आईसीएमआर की ही गाइडलाइन पर इलाज कर रहे हैं।

रायपुर. राजधानी रायपुर के 2 निजी संस्थानों ने कोरोना मरीजों की जान बचाने अंतिम विकल्प के तौर पर प्लाज्मा थैरेपी का इस्तेमाल किया। 76 मरीजों को परिजनों की सहमति से थैरेपी दी गई और इनमें से 41 मरीजों की जान बच गई। यानी सक्सेस रेट 55 प्रतिशत है। इसलिए निजी संस्थानों द्वारा इस थैरेपी पर भरोसा जताया जा रहा है।

मगर, प्रदेश के किसी भी सरकारी संस्थान को सरकार द्वारा प्लाज्मा थैरेपी दिए जाने की मंजूरी नहीं दी गई है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने अब तक गाइडलाइन जारी नहीं है, जबकि दूसरी तरफ निजी संस्थान आईसीएमआर की ही गाइडलाइन पर इलाज कर रहे हैं।

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देश स्तर पर इस थैरेपी को लेकर बड़ी बहस छिड़ी हुई है। मगर, अभी तक केंद्र सरकार ने इस थैरेपी को बंद करने संबंधी कोई निर्णय नहीं लिया है। यही वजह है कि रायपुर के संस्थान मरीजों यह थैरेपी दे रहे हैं। यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि इस थैरेपी में बहुत ज्यादा खर्च भी नहीं है।

इसलिए मरीजों के ठगे जाने की गुंजाइश भी नहीं रह जाती। बावजूद इसके सरकार के पास इस सवालों के कोई जवाब नहीं है कि कितने संस्थान प्लाज्मा थैरेपी दे रहे हैं, कितने मरीजों को दी गई, कितनों की जान बची और कितनी मौतें हुईं? जबकि मॉनिटरिंग की आवश्यकता है।

चयन का ये हो आधार

डोनर वे हों जो सिम्प्टमैटिक थे यानी जिनमें कोरोना के लक्षण अधिक थे। उन्हें स्वस्थ हुए २८ दिन हो चुके हों और उनमें एंटीबॉडी विकसित हुआ हो। कई बार सिम्प्टमैटिक होने के बाद भी एंटीबॉडी नहीं बनती। इसलिए एंटीबॉडी टेस्ट जरूरी है। मरीज, वे हों जो मॉडरेट सिम्प्टैमेटिक हों, यानी गंभीर स्थिति में हों।

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एक्सपर्ट-1, सही चयन ही सक्सेस देगा

प्लाज्मा थैरेपी के जरिए 25 मरीजों को नया जीवन मिला। ये वे मरीज थे जो मॉडरेट सिम्प्टमैटिक थे और हाई फ्लो ऑक्सीजन दी जा रही थी। मैं कहूंगा कि प्लाज्मा थैरेपी के लिए सही मरीज और सही डोनर का चयन सक्सेस रेट को बढ़ा देता है। ऐसी ही मरीजों का चयन करें। आप देखिए, गोवा और तमिलनाडू ने इस थैरेपी की उपयोगिता बताकर इसे बंद न करने का आग्रह किया है।

(डॉ. नीलेश जैन, विभागाध्यक्ष, ट्रांसफ्यूजन मेडिसीन, बालको मेडिकल सेंटर के मुताबिक)

एक्सपर्ट-2, जान बचाने का आखिरी विकल्प

प्लाज्मा थैरेपी कारगर है। मरीज गंभीर स्थिति में हैं तो उन सभी विकल्पों को जान बचाने के लिए जरूर आजमाना चाहिए, जो आपके पास हैं। हम जान बचा रहे हैं। मेरा मानना है कि जिन मरीजों में जरुरत है, उन्हें दे रहे हैं। अभी तक भारत सरकार या फिर आईसीएमआर से इस पर रोक लगाने जैसी कोई गाइड-लाइन प्राप्त नहीं हुई है। हां, चर्चा जरूर है।

(डॉ. पंकज ओमर, यूनिट हेड, कोविड-79, श्रीनारायणा हॉस्पिटल के मुताबिक)

प्रदेश के किसी भी शासकीय संस्थान में कोरोना मरीजों को प्लाज्मा थैरेपी न दी गई है, न दी जा रही है। कुछ निजी संस्थानों में इस थैरेपी को दिया जा रहा है।

-डॉ. सुभाष पांडेय, प्रवक्ता एवं संभागीय संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य विभाग

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