बदलनी होगी सोच
काजल भतपहरी, छात्रा, बीएससी फाइनल ईयर साइंस कॉलेज
यह सही है कि पहनावा हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है। लेकिन हमेशा दूसरों के हिसाब से पहनने और जीने की सीख हमेशा लड़कियों को ही क्यों दी जाती है। समाज में वेशभूषा से ही गल्र्स को क्यों जज किया जाता है। आप अपनी सोच सही रखेंगे तो चाहे कोई कैसा भी पहने फिर फर्क नहीं पड़ेगा। यदि महिला पायलेट को साड़ी में विमान उड़ाने को कहा जाए सम्भव नहीं। जंग पर सलवार कमीज में लडऩा सम्भव नहीं। स्पोट्र्स में लहंगा पहन कर खुद को साबित करना सम्भव नहीं।वेशभूषा से चरित्र का मूल्यांकन नहीं
सोनाली , सायबर एक्सपर्टजवाब देना जरूरी था
किसी भी इंसान के कपड़े या वेशभूषा से आप उसके चरित्र का मूल्यांकन नहीं कर सकते। खासकर जब बात महिलाओं की आती है तो उन पर विशेष तौर पर यह आरोप मढ़े जाते हैं कि समाज मे बढ़ रहे अपराधों में उनके पहनावे का हाथ है, परन्तु बात पहनावे की नही हैं। बात है विचारों और मानव जीवन के संस्कारों की। मानसिकता सही हो तो सारे कपड़े सही लगते हैं।सही जवाब देना जरूरी था
पल्लवी रावल, अकाउंटेंट
जो लोग ट्रोल करते हैं, प्रॉब्लम उन्हें है। उनकी थिंकिंग ही गलत है। किसी के कपड़ों से आप उन्हें जज नहीं कर सकते। हम किसी लड़के को देखकर नहीं बोल सकते कि उसकी मेंटिलिटी कैसी है। वैसे ही किसी लड़की के कपड़े गलत हैं आप कैसे बोल सकते हैं। राधिका आप्टे बहादुर लेडी है। एेसे ट्रोल करने वाले को सही जवाब देना जरूरी था।
कंफर्ट के हिसाब से हो लिबास
सोनाली तिवारी, वर्किंग गर्ल
पहनावे को लेकर बहस कोई नई बात नहीं है। चूंकि इन दिनों सोशल मीडिया का चलन है इसलिए ट्रोलिंग आम बात हो गई है। वास्तव में देखा जाए तो ट्रोलर बेवजह किसी भी चीज को मुद्दा बनाकर खुद पर ध्यान खींचना चाहते हैं। एेसे ट्रोलरों को दरनकिनार किया जाना चाहिए। मेरे हिसाब से तो कपड़े एेसे हों जिससे आप कंफर्ट फील करें, न कि दूसरे के हिसाब से पहनें।
एेसे लोगों की कोई सोच ही नहीं
मेघा बोस, इंटीरियर डिजाइनरजो लोग कपड़ों को लेकर कमेंट करते हैं, एेसे लोगों की कोई सोच ही नहीं है। हम पांचवीं जनरेशन की ओर रुख कर चुके हैं। जबकि कुछ लोगों की मानसिकता का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। किसी की पर्सनल लाइफ और वेशभूषा को लेकर हम कौन होते हैं बोलने वाले। और ये सवाल लड़कों के लिए क्यों नहीं। जबकि आज एेसा कोई क्षेत्र नहीं जहां लड़कियों ने भागीदारी न निभाई हो।
कपड़े एेसे हों जिसमें शालीनता नजर आए
सुनीता चंसोरिया सहा. प्राध्यापक, दुर्गा कॉलेज कपड़े एेसे हों जिसमें शालीनता नजर आए न कि फुहड़पन। शालीनता हमारी संस्कृति की हिस्सा है। इसका मतलब ये नहीं कि हमें कोई कुछ भी कह दें। सेलिब्रिटी लोगों के आदर्श होते हैं। इसलिए कई बार निजी जिंदगी खुलकर जीना थोड़ा मुश्किल साबित होता है। कास्ट्युम की उँचाई मायने नहीं रखती, कपड़े आप पर जचें और अच्छे लगंे बस।सभ्य समाज की जिम्मेदारी
डॉ ममता शर्मा, प्रिंसिपल पं. हरिशंकर शुक्ल कॉलेजमैं किसी व्यक्ति विशेष को लेकर कुछ नहीं कहूंगी। मेरा मानना यह है कि एक सभ्य समाज में होने के नाते हमारी जिम्मेदारी यह है कि बेवजह अनावश्यक दिखावा ठीक नहीं है। परिधान हमारी संस्कृति के परिचायक हैं। इसलिए जो भी चयन हो वह सलीकेदार हो।