प्रदेश में भू-अर्जन को लेकर शिशुपाल सोरी ने कहा कि आदिवासियों के लिए जल, जंगल और जमीन कोई वस्तु नहीं बल्कि उनके संस्कृति का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि यूएनओ ने भी घोषित कर रखा है कि कोई भी सरकार आदिवासियों की जमीन नहीं ले सकती। उन्होंने कहा कि प्रदेश के आदिवासी विकास विरोधी नहीं हैं। प्रदेेश के आदिवासियों ने कभी भी स्कूल, कॉलेज, अस्पताल के लिए जमीन देने से इंकार नहीं किया है। 2013 में भू-अर्जन को लेकर जो कानून बना है। इसमें संशोधन की जरूरत नहीं है।
उन्होंने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रदेश सरकार को आदिवासियों की परवाह नहीं है, केवल इनको उद्योगपतियों की परवाह है। उन्होंने कहा कि सरकार की कोशिश है कि इस कानून के जरिए आदिवासियों की जमीन कैसे ली जाए और बड़े उद्योगपतियों को दी जाए।बड़े उद्योगपतियों को लाभ दिलाने के लिए प्रदेश सरकार ने भू-राजस्व संहिता में यह संसोधन किया है।
वहीं उन्होंने संशोधन पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रदेश सरकार के मंत्री तीन गुना मुआवजे की बात कह रहे हैं, जबकि उनको तो उसमें संसोधन का अधिकार ही नहीं है। राज्यपाल जब अधिसूचित करता है कि तब कानून में संशोधन हो सकता है।
इससे पहले गुरुवार को भू-राजस्व संहिता में संशोधन के बाद मचे बवाल पर सरकार ने सफाई दी है। राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय मंत्रिपरिषद के तीनों आदिवासी चेहरों गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप और वन एवं विधायी कार्य मंत्री महेश गागड़ा के साथ पहुंचे।
राजस्व मंत्री ने कहा कि कानून में यह बदलाव केवल केंद्र और राज्य सरकार की परियोजनाओं को शीघ्रता से पूरा करने के लिए किया गया है। जो व्यक्ति स्वेच्छा से जमीन बेचना चाहता है, उसके लिए यह संशोधन किया गया है। राजस्व मंत्री ने दावा किया कि इस संशोधन के बाद भी कोई गैर आदिवासी निजी व्यक्ति आदिवासी की जमीन नहीं खरीद सकता।
यहां तक तक मंत्री प्रेमप्रकाश और मुख्यमंत्री
रमन सिंह भी आदिवासी की जमीन नहीं खरीद सकते। एेसी खरीदी केंद्र-राज्य सरकार अथवा उनके उपक्रमों के नाम पर ही हो सकती है। राजस्व मंत्री ने कहा कि आज की तारीख में कह सकते हैं, जो जमीन खरीदी जाएगी उसे निजी व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा।