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‘पत्रिका’ पड़ताल में सामने आया कि अकेले रायपुर और दुर्ग में बीते डेढ़ 2 महीने में 2 हजार से अधिक प्लाज्मा यूनिट दान की गईं। मगर, स्वास्थ्य विभाग न ही खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के पास कितने मरीजों को प्लाज्मा दिया गया और कितने ठीक हुए, इसका कोई रेकॉर्ड है। हालांकि पूर्व में कुछ डॉक्टरों ने दोनों विभागों से मांग की थी कि इसका एक सरकारी ड्राफ्ट बनाया जाए, ताकि इसके मिस यूज को रोका जा सके। मगर, इस पर ध्यान नहीं दिया गया।वायरस ने बदला प्रभाव इसलिए यह कारगर नहीं
‘पत्रिका’ पड़ताल में सामने आया कि मरीज कोरोना की पहली लहर में रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर के कुछ संस्थानों ने प्लाज्मा थैरेपी शुरू की थी। तब परिणाम अच्छे थे, क्योंकि तब मरीज जल्द स्वस्थ हो रहे थे। मगर, आज वायरस म्युटेड कर चुका है। यह पहले से 4-5 गुना तक घातक साबित हो रहे है। इसलिए यह कारगज नहीं रह गई है। मगर, डॉक्टर मानते हैं कि इस थैरेपी को दिए जाने का फैसला डॉक्टरों के विवेक पर छोड़ देना चाहिए, उच्च स्तर पर इसकी मॉनीटरिंग होनी ही चाहिए।
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अभी 1200 से अधिक लोगों को प्लाज्मा डोनेशन करवाया है। मगर, कल इसे आईसीएमआर और एम्स ने अपने ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से हटाया है, उसके बाद डोनेशन रोक दिया गया है।
– रजत अग्रवाल, कुछ फर्ज हमारा भी (प्लाज्मा डोजेशन में मदद करने वाली संस्था)
क्या कहते हैं विशेषज्ञ-
– डॉ. नीलेश जैन, हेड, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, बालको मेडिकल सेंटर
– डॉ. पंकज ओमर, क्रिटिकल केयर हेड, श्रीनारायणा हॉस्पिटल रायपुर
– हिरेन पटेल, सहायक औषधि नियंत्रक, राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग