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COVID-19: चलना संभल-संभल के…

locationरायपुरPublished: Apr 07, 2020 08:27:05 pm

Submitted by:

Ashish Gupta

ऐसा उल्लेख मिलता है कि वर्ष 1918 में स्पेनिश फ्लू से दुनियाभर में 5 करोड़ से ज्यादा मौतें हुईं थीं। भारत में ही करीब डेढ़ करोड़ लोगों ने अपनी जानें गंवा दी थीं।

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रायपुर. ऐसा उल्लेख मिलता है कि वर्ष 1918 में स्पेनिश फ्लू से दुनियाभर में 5 करोड़ से ज्यादा मौतें हुईं थीं। भारत में ही करीब डेढ़ करोड़ लोगों ने अपनी जानें गंवा दी थीं। तब महात्मा गांधी भी इस बीमारी की चपेट में आकर बीमार हो गए थे।
यह वह दौर था जब न तो चिकित्सा विज्ञान इतना उन्नत था और न ही तकनीक। तब भी मनुष्य ने उस भयंकर महामारी से डटकर मुकाबला किया और अंततः विजय हासिल की। सिर्फ स्पेनिश फ्लू ही क्यों, उसके भी पहले, और बाद में, न जाने कितनी ही ऐसी ही महामारियों को हमने हराया है। कोविड-19 पर भी हम विजय हासिल करेंगे, यह तय है।
कोविड-19 वायरस पर दुनियाभर में तेजी से रिसर्च हो रहा है। प्रभावी दवाओं की खोज हो रही है। टीके इजाद किए जा रहे हैं। विभिन्न स्रोतों से नतीजों की जो जानकारियां सामने आ रही हैं, वे उत्साह बढ़ाने वाली हैं। चिकित्सा विज्ञानियों को इस दिशा में लगातार सफलताएं मिल रही हैं।
इन अनुसंधानों के बीच कोविड-19 (COVID-19) से संक्रमित लोगों का उपचार जारी है। मौतों की शुरुआती बढ़त के बाद अब इस वायरस से मुक्त होकर स्वस्थ होने वाले लोगों का बढ़ता आंकड़ा उम्मीदें जगा रहा है। छत्तीसगढ़ का ही उदाहरण लें, यहां इस महामारी से अब तक एक भी जान नहीं गई है, जबकि जिन 10 लोगों का उपचार किया गया, उनमें से 9 पूरी तरह स्वस्थ होकर घर जा चुके हैं।
कुल मिलाकर यह कि तब के स्पेनिश फ्लू की तुलना में आज कोविड-19 से हम ज्यादा बेहतर तरीके से लड़ रहे हैं। वैश्विक-रूप से हम तब की तुलना में ज्यादा अच्छी तरह एकजुट हैं। अनुभवों और उपलब्धियों की साझेदारी कहीं ज्यादा अच्छी है। इसलिए कोविड-19 पर अपेक्षाकृत जल्दी काबू पा लेने की सुनिश्चितता कहीं ज्यादा है।
…लेकिन इन सबके बावजूद संघर्ष कड़ा है। सबसे बड़ी चुनौती कोविड-19 से होने वाली क्षति को कम से कम करना है। तकनीक और विज्ञान के विकास ने जहां हमें हौसला दिया है, वहीं वैश्विक-संपर्कों को सघन कर दिया है। इसी सघनता ने स्पेनिश फ्लू की तुलना में कोविड-19 के प्रसार के लिए ज्यादा अनुकूलताएं निर्मित कर दी हैं। इसी वजह से देखते ही देखते यह बीमारी ने दुनियाभर में फैल गई और लगभग सभी देशों को अपनी चपेट में ले लिया। भारत में भी तेजी से पांव पसार रही है।
तमाम शोधों की अच्छी प्रगति के बावजूद कोविड-19 के खिलाफ अभी लंबी लड़ाई लड़नी होगी। इसमें खूब सारी ऊर्जा, खूब सारे संसाधनों और खूब सारे समय की जरूरत होगी। जब तक कारगर हाथियार हाथ नहीं आ जाता, तब तक हमें अपनी हर सांस को सहेजे रखकर मोर्चे पर डटे रहना होगा।
कोविड-19 की सबसे बड़ी ताकत है उसकी आक्रामक संक्रामकता। बस इसी पर चोट करनी है। सघन संपर्कों से निर्मित अनुकूलता को खत्म करना है। छोटा सा मंत्र याद रखना है- एचएमएस। एच यानी हाथ बार-बार अच्छी तरह से धोते रहें। एम यानी मास्क पहन कर रखें। एस यानी सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेंन करें, घर पर रहें।
स्पेनिश फ्लू के समय महात्मा गांधी ने इसी मंत्र को अपना कर तब उस महामारी से मुक्ति पाई थी। तब उन्होंने भी एकांतवास, संयम और आहार के सूत्र पर भरोसा किया और जल्द स्वस्थ हो गए। सिर्फ वे ही नहीं, उनके आश्रम के सभी लोगों ने नियमों का पालन कर महामारी से खुद को बचा लिया।
(लेखक तारण सिन्हा जनसंपर्क कमिश्नर)

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