निर्देश के मुताबिक मनरेगा के तहत व्यक्तिगत व सामुदायिक पशु शेड, बकरी और मुर्गीपालन शेड बनाए जा सकेंगे। स्वसहायता समूहों के लिए कृषि उत्पादों, सार्वजनिक खाद्यान्न भंडारगृह व ग्रामीण हाट निर्माण के काम भी इसमें लिए जा सकते हैं। व्यक्तिगत व सामुदायिक वर्मी कंपोस्ट पिट तथा नाडेप व बर्कली कंपोस्ट पिट भी बनाए जा सकते हैं। इसके अलावा पशुपालन केंद्रों और मवेशी आश्रयगृहों को बढ़ावा देने वहां मनरेगा से सिंचाई के लिए अधोसंरचना तैयार किए जा सकते हैं। लेकिन, इन कार्यों में जलापूर्ति के लिए पाइपलाइन नेटवर्क, बोरवेल या ट्यूबवेल के काम मनरेगा से नहीं किए जा सकेंगे।
संबंधित तकनीकी विभाग से परामर्श लेकर हितग्राही के या सार्वजनिक जमीन पर चराई-भूमि विकास, चारा वाले वृक्षों या उद्यानिकी पौधों के रोपण, सालभर उगने वाले घास जैसे अजोला, नैपियर, अंजन और फॉक्स-टेल ग्रास तथा पशुओं के खाने योग्य फली वाले पौधे उगाने के काम मनरेगा के तहत लिए जा सकते हैं। इस तरह की गतिविधि एक जमीन पर केवल एक बार ही ली जा सकती है। इनकी खेती के लिए एक बार बीज या थरहा पर खर्च की अनुमति चरागाह भूमि विकास के अंतर्गत दी जा सकेगी।
पशुपालन और डेयरी विकास के लिए मनरेगा के अंतर्गत निर्मित संसाधनों के सफल उपयोग के लिए पशुधन विकास विभाग पशुपालकों को लिंकेज व वित्तीय सहायता उपलब्ध कराएगी। व्यक्तिमूलक और सामुदायिक चरागाह के विकास के लिए पंचायतों का चयन कर उनकी सूची राज्य सरकार और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को भेजेगी।
हितग्राहियों का होगा चयन पशुधन विकास विभाग ऐसे हितग्राही किसानों और पशुपालकों की भी पहचान करेगी जो हरे चारे या अजोला की खेती में रुचि रखते हों, किसी दुग्ध संघ के सदस्य हों या जिन्हें पशु शेड की जरूरत हो। वार्षिक कार्ययोजना तैयार करने के लिए यह सूची संबंधित ग्रामसभा को उपलब्ध कराई जाएगी। ग्रामसभा में ही हितग्राहियों का चयन किया जाएगा। सभी आकांक्षी जिलों में से हर वर्ष चारे की कमी वाले 100 ग्राम पंचायतों का चयन कर अगले तीन वर्ष तक के लिए चरागाह विकास के कार्य लिए जाएंगे।