भाजपा इसी पसोपेश में है कि विरोध करे तो किस प्रकार? क्योंकि कैंप खोले जाने का विरोध कर नहीं सकती है, क्योंकि यह केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने मिलकर तय किया है। ग्रामीणों का समर्थन करने पर अंदेशा यह है कि कहीं नक्सलियों की मांग का समर्थन तो नहीं हो जाएगा, क्योंकि अंदरूनी हलकों में चर्चा यह भी है कि नक्सली ग्रामीणों के कंधे का सहारा ले रहे हैं।
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इस मामले में भाजपा ने पूर्व मंत्री दिनेश कश्यप के नेतृत्व में 6 सदस्यीय जांच कमेटी भी गठित की थी। मगर, इस कमेटी को सिलगेर जाने की अनुमति ही नहीं दी गई। जिसे लेकर भाजपा ने कोई कड़ा विरोध नहीं जताया। इस प्रकरण में सिर्फ पूर्व मंत्री महेश गागड़ा ने ही मुखर होकर न्यायिक जांच की मांग की थी। जबकि भाजपा के तमाम बड़े नेता खुद पार्टी अध्यक्ष विष्णुदेव साय स्वीकार कर रहे हैं कि यह एक बड़ी घटना है।
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दलगत राजनीति से हटकर बने कमेटी
सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईएएस अफसर बीकेएस रे ने कहा, इस मामले में सीआरपीएफ कहते हैं कि नक्सलवादी थे, स्थानीय लोग कहते हैं कि ग्रामीण थे। आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। इस मामले में सच्चाई सामने लाने के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक कमेटी बनाई जानी चाहिए। जिसमें साफ-स्वच्छ छवि वाले, स्वतंत्र विचारधारा के लोग हों। राजनीतिक पार्टियां कमेटी बनाएंगी तो वे पार्टी लाइन पर चलेंगी। दूसरा जांच की समय-सीमा भी तय हो। इस मामले में मानवाधिकार आयोग को सोचना चाहिए।
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प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा, इस मामले में भाजपा ओछी राजनीति कर रही है। जांच कमेटी बनाकर सिर्फ सियासत की है। भाजपा की मंशा नक्सलवाद को खत्म करने की नहीं है। सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है और पूरी स्थिति पर नजर रखी हुई है।