गुरु छानकर बनाना होगा
भागवताचार्य आचार्य नंदकुमार चौबे ने कहा कि व्यासपीठ और राजगुरु तक आज सुरक्षित नहीं हैं। जहां तक आस्था से खिलवाड़ का प्रश्न है तो मैं तो दोनों पक्ष को दोषी मानता हूं। क्योंकि जहां और जिन स्थानों पर श्रीमद् भागवत पुराण की कथा सुनाता हूं तो यह कहता हूं कि पानी पीओ जानकर और गुरु छानकर बनाना होगा। इसका आशय साफ है कि साधु पंथ की कुल परंपरा, उसके आचरण को कसौटी पर जांच-परखने के बाद ही किसी साधु-संत या गुरु से दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए। चिंता का विषय तो यह है कि आज कम समय में अधिक लाभ की लालसा अंधा बना रही है, इसी से अधर्म बढ़ रहा है।चमत्कारिक मानना बड़ी भूल
शंकराचार्य आश्रम के पं वीरेंद्र दुबे ने कहा कि लोग यदि साधन-सुविधा और अच्छे वेशभूषा वाले संत-बाबा को चमत्कारिक मानते हैं, तो यह बड़ी भूल है। आस्था पर कुठाराघात जैसी समस्या का समाधान जन जागरण से ही संभव है। ऐसे लोगों भी जिम्मेदार हैं, जो बिना जाने-समझे किसी भी बाबा को गुरु बना लेते हैं। यदि कोई संत-बाबा का आचरण धर्म के अनुकूल नहीं लगता है तो उसके पास नहीं जाना चाहिए। इसके माध्यम से ही स्वार्थपूर्ति वाले ढोंगी बाबाओं से बचा जा सकता है। पुरोहित का हित साधन करने वाले, धर्म के अनुकूल आचरण करने वाले ही असली संत हैं। उनकी दीक्षा ही सार्थक मानी जाती है।गंभीर चिंतन की जरूरत
किशोर चंद नायक ने कहा कि आस्था को चौपट करने वाले संत-बाबाओं ने बड़ा अविश्वास पैदा कर दिया है। ऐसे में धर्म और आस्था किस तरह कायम रखी जाए इस पर भी चिंतन करने की जरूरत है।
मंदिरों में चढ़ावे का उपयोग हो
यह बात भी सामने आई कि मठ-मंदिरों में लाखों रुपए का चढ़ावा आता है, मठों के पास काफी सम्पत्तियां हैं, उसका उपयोग लोकहित में होना चाहिए। सुविधाभोगिता पर नहीं। स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में धार्मिक संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए।
ये आए सुझाव
– आखिर फर्जी बाबाओं पर गुरुओं और मनमानी तरीके से शंकराचार्य बनाने पर रोक क्यों नही लगाई जाती।
– आस्था को चौपट करने वालों से एक आम व्यक्ति किस तरह सतर्क रहे, वह कैसे जानें कि कौन-साधु-संत सही या गलत।
– धर्म गुरु सरकार की गलत नीतियों जिसका दुष्प्रभाव जनता के हित नहीं होता, उसका विरोध क्यों नहीं किया जाता।
– रामराज्य की बातें कही जाती है, लेकिन रामराज्य की नीतियों का अनुशरण क्यों नहीं किया जाता है। धर्म जागरण का अभियान मान्य साधु-संत क्यों नहीं चलाते।
श्रोताओं के सवाल
श्रद्धालु राजकुमार राठी ने पूछा एक आम व्यक्ति यह कैसे जाने कि कौन साधु-संत मान्य है या ढोंगी है। ऐसे सवालों का समाधान तो धर्म संसद के माध्यम से क्यों नहीं किया जाता है।