ज्ञात हो कि जिला अस्पताल व मेडिकल कॉलेज अस्पताल अलग-अलग संचालित होने के बाद भी जिला अस्पताल में 350 से 400 मरीजों की रोजाना ओपीडी हो रही है। इसके बाद भी सुविधाओं के विस्तार में बेहद धीमी गति से काम हो रहा है। यहां महज सर्दी-खांसी का इलाज हो रहा। गंभीर बीमारी वालों को रेफर की पर्ची थमा रहे हैं।स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार जिलेभर में तकरीबन 100-150 मरीज हर महीने डायलिसिस के लिए बाहर जाते हैं, जिन्हें 4 से 5 हजार तक एक बार में खर्च आता है। इससे अधिक भी लग जाता है। ऐसे मरीजों को दुर्ग-भिलाई रायपुर तक दौड़ लगाड़ी पड़ती है। इसके जरूरतमंदों को यही सुविधा मिल जाए, तो बहुत फायदा होगा। शासकीय अस्पताल में सुविधा होने से यहां रियायत दर पर या मुफ्त में यह सुविधा मिल पाएगी।
मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी यह सुविधा नहीं
मेडिकल कॉलेज अस्पताल तो खोल दिया गया है, लेकिन यहां गंभीर बीमारियों का इलाज और जांच नहीं किया जा रहा है। मशीन है, तो एक्सपर्ट नहीं है। एक्सपर्ट है, तो उनसे संबंधित मशीन नहीं है। ऐसे में मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी सिर्फ छोटी-मोटी बीमारियों का ही इलाज हो पा रहा है।
रक्त शोधन की कृत्रिम विधि है डायलिसिस
डायलिसिस (अपोहन) रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है। डायलिसिस की प्रक्रिया को तब अपनाया जाता है, जब किसी व्यक्ति के वृक्क यानि गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं। गुर्दे से जुड़े रोगों, लंबे समय से मधुमेह के रोगी, उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियों में कई बार डायलसिस की आवश्यकता पड़ती है।
पत्राचार किया जा रहा
डायलिसिस की मशीनें आई हुई हैं। जिला अस्पताल में इसके लिए एक्सपर्ट नहीं है। इंस्टालेशन का काम भी बाहर की कंपनी करेगी। कंपनी को इंस्टाल करने के लिए पत्राचार किया जा रहा है।
-डॉ. केके जैन, सिविल सर्जन