आंतों की डाइग्नोस थोड़ी मुश्किल
डॉ रिमझिम ने बताया कि बच्चों के आँतों के प्रॉब्लम का इलाज इंडोस्कॉपी से किया जाता है। ऊपरी और निचले हिस्से की इंडोस्कॉपी तो आसान होती है लेकिन सेंटर पार्ट के लिए कैप्सुल टेक्नीक से इलाज किया जाने लगा है। कैप्सुल पेट में जाकर आंतों के उस स्पॉट की इमेज लेता है जहां ट्रीटमेंट किया जाना है। यह तकनीक शुरू में महंगी थी लेकिन अब अपेक्षाकृत सस्ती हो गई है। 10 से 15 प्रतिशत बच्चों को गाय के दूध से एलर्जी होती है जिसे डाइग्नोस कर पाना आसान नहीं होता।विल्सन डिजीज पर रिसर्च
मुंबई से आईं डॉ आभा नागराल ने बताया इन दिनों बच्चों में कॉपर की अधिकता से होने वाली बीमारी विल्सन डिजीज पर रिसर्च चल रहा है। इसमें जैनेटिक लिंक पर वर्क चल रहा है। इसमें मेटाबोलेटिक एवं जेनेटिक का भी रोल होता है। दूध की वजह से गैलेक्टोसिमिया और फ्रुट के कारण फ़्रुक्टोस इंटोरलेंस होता है। इसी तरह एक बीमारी है विल्सन डिज़ीज़ जो ब्रेन और लिवर दोनों को इफेक्ट करती है। टाइम पर इसे डिटेक्ट कर लिया जाए तो इलाज संभव है। इसके सिम्टम्स हैं पीलिया, पेट में पानी भरना , बच्चे की लार टपकना। क्लास में अचानक से हैंडराइटिंग बिगड़ जाना और हाथ थरथराना, आवाज़ का लडखड़ऩा इत्यादि । इस कॉन्फ्रेंस में बच्चों के उल्टी या मल में खून आने की बीमारियों के बारे में भी चर्चा की गई।